Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 372
________________ गा०५८] उत्तरपयडिडिदिसंकमे भुजगारसंकमो ३५६ जह द्विदिसं० असंखे०गुणो। मिच्छ० जह० असंखे०गुणो । अणंताणु ०४ जह० ट्ठिदिसं असंखे०गुणो। ___७४१. देवाणं णारयभंगो। भवण०-वाण०:सव्वत्थोवो अणंताणु०४ जह०द्विदिसं० । सम्म० जहट्ठिदिसं. असंखे०गुणो। सम्मामि० जह० द्विदिसं विसे० । पुरिसवेद० जह ट्ठिदिसं. असंखे०गुणो। सेसं देवोघं । जोदिसि० विदियपुढविभंगो। सोहम्मादि जाव गवगेवञ्जा ति सव्वत्थोवो सम्म० जह ट्ठिदिसंक० । जट्ठिदिसं० असंखे० गुणो। अणंताणु०४ जहट्ठिदि०संक० असंखे०गुणो। सम्मामि० जह ट्ठिदिसंक० असंखे०गुणो । बारसक०-णवणोक० जहट्ठिदिसं. असंखे गुणो । मिच्छ० जहहिदिसं० संखे गुणो । अणुदिसादि सव्वढे त्ति सव्वत्थोवो सम्म० जह०द्विदिसंक० । जट्ठिदिसंक० असंखे गुणो। अणंताणु०४ जहद्विदिसंक० असंखे०गुणो। बारसक०-णवणोक० जह द्विदिसं० असंखे०गुणो। मिच्छ०-सम्मामि० जहट्ठिदिसं० सरिसो संखे गुणो । एवं जाव० । एवं चउवीसमणिओगद्दाराणि समत्ताणि । भुजगारसंकमस्स अट्ठपदं काऊण सामित्तं कायव्वं । सम्यग्मिथमात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है । उससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है । उससे अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। ६७४१. देवोंमें नारकियोंके समान भंग है । भवनवासी और ध्यन्तर देवोंमें अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जवन्य स्थितिसंक्रम सबसे स्तोक है । उससे सम्यक्त्वका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। उससे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। उससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। शेष भंग सामान्य देवोंके समान है। ज्योतिषियोंमें दूसरी पृथिवीके समान भंग है। सौधर्म कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयकतकके देवोंमें सम्यक्त्वका जघन्य स्थितिसंक्रम सबसे स्तोक है। उससे यस्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। उससे अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। उससे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। उससे बारह, कषायों और नौ नोकषायोंका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। उससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम संख्यातगुणा है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सम्यक्त्वका जघन्य स्थितिसंक्रम सबसे स्तोक है। उससे यस्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। उससे अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। उससे बारह कषायों और नौ नोकषायोंका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। उससे मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रभ परस्पर सहश होकर संख्यातगुणा है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इस प्रकार चौबीस अनुयोगद्वार समाप्त हुए। * भुजगारसंक्रमका अर्थपद करके स्वामित्व करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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