Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 363
________________ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे [ बंबगो ६ $ ७१६. तं कथं १ इत्थि - णवंसयवेदाणं चरिमट्ठिदिखंडयायामादो दुरिमडिदिखंडयायामो असंखे० गुणो । एवं दुचरिमादो तिचरिमडिदिखंडयमसंखेअगुणं । तिचरिमादो चदुचरिममिदि एदेण कमेण संखेज ट्ठिदिखंडय सहस्साणि हेट्ठा ओसरिय अंतरकरणप्पारंभादो पुव्वमेव अट्ठ कसाया खविदा । तेण कारणेणेदेसिं चरिमट्ठिदिखंडय - चरिमफाली तत्तो असंखेञ्जगुणा जादा । ३५० * सम्मामिच्छत्तस्स जहरपट्टिदिसंकमो असंखेज्जगुणो । ९ ७१७. चारित्तमोहक्खवयपरिणामेहि घादिदावसेसो अट्ठकसायाणं जहण्णट्ठिदिसंकमो । एसो वुण तत्तो अनंतगुणहीणविसोहिदंसणमोहक्खवणपरिणामेहि घादिदावसेसो ति । तत्तो एदस्सासंखेज्जगुणमव्वामोहेण पडिवज्ञेयव्वं । * मिच्छुत्तस्स जहरण द्विदिसंकमो असंखेज्जगुणो । $ ७१८. कुदो ? मिच्छत्तक्खवणादो तो मुहुत्तमुवरि गंतॄण सम्मामिच्छत्तस्स जहणडिदिसंकमुप्पत्तिदंसणादो । * अताणुबंधीषं जहडिदिसंकमो असंखेज्जगुणो । ९ ७१९. कुदो ? विसंजोयणापरिणमेहिंतो दंसणमोहक्वत्रयपरिणामाणमणंतगुणत्तेण मिच्छत्तचरिमफालीदो अनंताणुबंधिचरिमफालीए असंखेज्जगुत्तविरोहाभावादो । एवं ताव ओघेण जहणट्ठिदिसंकमप्पाबहुअं परूविय एत्तो णिरयगइपडिबद्ध जहण्णट्ठिदि १७१६. सो कैसे ? स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके अन्तिम स्थितिकाण्डक आयामसे द्विचरम स्थितिकाण्डक आयाम असंख्यातगुणा है । इसी प्रकार द्विचरमसे त्रिचरम स्थितिकाण्डक आम संख्यातगुणा है । त्रिचरमसे चतुश्चरम इस प्रकार इस क्रमसे संख्यात हजार स्थितिकाण्डक नीचे जाकर अन्तरकरण प्रारम्भसे पूर्व ही आठ कषाय क्षयको प्राप्त हुए है । इस कारण से इनके अन्तिम काण्डको अन्तिम फालि स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य स्थितिसंक्रमसे विशेष अधिक है। * सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है । ६ ७१७. क्योंकि चरित्रमोहक्षपकके परिणामोंसे घात करनेसे शेष बचा हुआ आठ कषायों का जघन्य स्थितिसंक्रम है और यह तो उनसे अनन्तगुणे हीन दर्शनमोहक्षपक के परिणामोंसे घात करनेसे शेष बचा हुआ जघन्य स्थितिसंक्रम है । इसलिए उससे इसे असंख्यातगुणा व्यामोहके विना जानना चाहिए । * उससे सिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है । $७१८. क्योंकि मिथ्यात्वका क्षपणासे अन्तर्मुहूर्त ऊपर जाकर सम्यग्मिथ्यात्व के जघन्य स्थितिसंक्रमकी उत्पत्ति देखी जाती है । * उससे अनन्तानुबन्धियोंका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है । ७१६. क्योंकि विसंयोजनारूप परिणामोंसे दर्शनमोहक्षपकके परिणाम अनन्तगुणे होने से मिथ्यात्व की अन्तिम फालिसे अनन्तानुबन्धीकी अन्तिम फालिके असंख्यातगुणे होने में कोई विरोध नहीं है। इस प्रकार सर्व प्रथम ओघसे जघन्य स्थितिसंक्रम अल्पबहुत्वका कथन करके आगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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