Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ 8 एत्थ सएिणयासो कायव्वो।
$ ६९१. एत्थुद्देसे सण्णियासो कायव्यो ति चुण्णिसुत्तयारस्स अत्थसमप्पणावयणमेदं । संपहि एदेण समप्पिदत्थस्स फुडीकरणट्ठमुच्चारणं वत्तइस्सामो । तं जहासण्णियासो दुविहो-जह० उक्क० । उक्कस्सं उकस्सट्ठिदिविहत्तिभंगो । णवरि आणदादि सव्वदृसिद्धिं मोत्तण जम्हि जम्हि सम्म०-सम्मामि० सण्णियासिजंति तम्हि तम्हि सिया अस्थि, सिया णत्थि । जदि अत्थि, सिया संकामओ सिया असंकामओ। जदि संकामओ, किमुक्क० अणुक्क० १ णियमा अणुक्क० अंतोमुहुत्तूणमादि कादूण जाव चरिमेणुव्वेल्लणकंडएणूणं ति । आणदादि णवगेवजा त्ति द्विदिविहत्तिभंगो । णवरि जम्हि सम्म०-सम्मामि० तम्हि सिया अस्थि सिया णत्थि । जइ अत्थि, सिया संका० सिया असंका० । जदि संका० किमुक्क० अणुक्क० ? उक्कस्सा वा अणुकस्सा वा । उकस्सादो अणुक्कस्सं पलिदो० असंखे०भागूणमादि कादूण जाव चरिमेणुव्वेल्लणकंडएणूणं ति । अणुदिसादि सव्वट्ठा त्ति द्विदिविहत्तिभंगो।
और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष होनेसे यहाँपर इन प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिसंक्रमका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट: अन्तर साधिक एक वर्षे कहा है। इस सम्बन्धमें कुछ विशेष वक्तव्य है सो उसे स्थितिविभक्तिसे जान लेना चाहिए । नपुंसकवेदके साथ क्षपकणिपर चढ़नेका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व होनेसे यहाँ इसके जघन्य स्थितिसंक्रमका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व कहा है । शेष कथन सुगम है।
* यहाँपर सन्निकर्ष करना चाहिए ।
६.६९१. इस स्थानपर सन्निकर्ष करना चाहिए इस प्रकार चूर्णिसूत्रकारका अर्थका प्रतिपादन करनेवाला यह वचन है। अब इस द्वारा कहे गये अर्थका स्पष्टीकरण करनेके लिए उच्चारणाको बतलाते हैं । यथा-सन्निकर्ष दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका भंग उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके समान है। इतनी विशेषता है कि आनतसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंको छोड़कर जिन-जिन प्रकृतियोंके साथ सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका सन्निकर्ष करते हैं वहाँ-वहाँ कदाचित् ये दोनों प्रकृतियाँ हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो कदाचित् संक्रामक होता है
और कदाचित् असंक्रामक होता है। यदि संक्रामक होता है तो क्या उत्कृष्ट स्थितिका संक्रामक है या अनुत्कृष्ट स्थितिका संक्रामक है ? नियमसे अन्तर्मुहूर्त कम उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर अन्तिम उद्वेलनाकाण्डकसे न्यून स्थितितक अनुत्कृष्ट स्थितिका संक्रामक होता है । आनतसे लेकर नौ ग्रैवेयक तक स्थितिविभक्तिके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि जिसके साथ सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका सन्निकर्ष करते हैं वहाँ ये दोनों प्रकृतियाँ कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो वह इनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है। यदि संक्रामक है तो क्या उत्कृष्ट स्थितिका संक्रामक है या अनुत्कृष्ट स्थितिका संक्रामक है ? अपनी उत्कृष्ट स्थितिका भी संक्रामक है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी संक्रामक है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका संक्रामक है तो वह उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा पल्यके असंख्यातवें भागसे न्यून अनुत्कृष्ट स्थितिसे लेकर अन्तिम उद्वेलना. काण्डकसे न्यून तककी स्थितिका संक्रामक है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक स्थितिविभक्तिके समान भंग है।
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