Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 356
________________ गा० ५८ ] ____ उत्तरपयडिडिदिसंकमे सण्णियासो ३४३ 5 ६९२. जहण्णए पयदं । दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० जह० द्विदिसंकामेंतो सम्म०-सम्मामि०-बारसक०-णवणोक० किं जह० अजह. ? णियमा अज० असंखे०गुणब्भहियं । सम्म० जह० द्विदिसंका० २१पयडीणं णियमा अज० असंखे गुणब्भहियं । सम्मामि० जह० द्विदिसंका० सम्म०-बारसक०-णवणोक० णियमा अज० असंखेगुणब्भहियं । अणंताणु०कोह० जह० द्विदिसंका०२४पयड़ीणं णियमा अज० असंखेजगुणब्भहियं । तिण्हं कसायाणं णियमा जहण्णं । एवं तिण्हमणंताणु०कसायाणं । अपञ्चक्खाणकोह० जह० द्विदिसंका० ४ चदुसंज०-णवणोक० णियमा अज० असंखे गुणब्भहियं । सत्तकसायाणं णियमा जहण्णं। एवं सत्तकसायाणं । णउंसयवे० जहद्विदिसंका० इत्थिवेद० णियमा जहण्णं । छण्णोक०-पुरिसवेद०चदुसंज० णियमा अज० असंखे गुणब्भ० । इत्थिवेद० जह० द्विदिसंकामयस्स णवंस० सिया अस्थि सिया णत्थि । जइ अत्थि णियमा जह० । सत्तणोक०-चदुसंज० णियमा अज० असंखे०गुणब्भहियं । हस्सस्स जह० हिदिसंका० पुरिसवे. तिण्हं संजलणाणं णिय० अज० संखे०गुणभहियं। लोहसंज० णिय० अज० असंखे० गुणब्भहियं। पंचणोक० णियमा जह० । एवं पंचणोक० । पुरिसवेद० जह० डिदिसंका० ६६६२. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । श्रोधसे मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका :संक्रम करनेवाला जीर सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी क्या जघन्य स्थितिका संक्रामक होता है या अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है ? नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। सम्यक्त्वकी जवन्य स्थितिका संक्रामक जीव २१ प्रकृतियोंकी नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका संक्रामक जीव सम्यक्त्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिका संक्रामक जीव २४ प्रकृतियोंकी नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी नियमसे जघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। इसी प्रकार मान आदि तीन अनन्तानुबन्धी कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष होता है। अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जघन्य स्थितिका संक्रामक जीव चार संज्वलन और नौ नोकषायोंकी नियमसे असंख्यातगुणी अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। सात कषायोंकी नियमसे जघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। इसी प्रकार सात कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष होता है। नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिका संक्रामक जीव स्त्रीवेदकी नियमसे जघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। छह नोकषाय, पुरुषवेद और चार संज्वलनकी नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है । स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिके संक्रामक जीवके नपुंसकवेद कदाचित् है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो वह नपुसकवेदकी नियमसे जघन्य स्थितिका संक्रामक होता है । सात नोकषाय और चार संज्वलनकी नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। हास्यकी जघन्य स्थितिका संक्रामक जीव परुषवेद और तीन संचलनकी नियमसे संख्यातगणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है । लोभसंज्वलनकी नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। तथा पाँच नोकषायोंको नियमसे जघन्य स्थितिका संक्रामक होता है । इसी प्रकार पाँच नोकषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिका संक्रामक जीव HTHHTHHTHHAT Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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