Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 360
________________ गा०५८ ] उत्तरपयडिट्ठिदिसंकमे अप्पाबहुवे ३४७ * सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमक्कस्सहिदिसंकमो तुल्लो विसेसाहियो। ७००. एदेसिमुक्कस्सट्ठिदिसंकमो अंतोमुहुत्तूणसत्तरिसागरो०कोडाकोडीमेत्तो । एसो वुण कसायाणमुक्कस्सद्विदिसंकमादो विसेसाहिओ। केत्तियमेत्तेण ? अंतोमुहुत्तूणतीसंसागरो०कोडाकोडीमेत्तेण। * मिच्छत्तस्स उक्करसहिदिसंकमो विसेसाहिो । ६७०१. कुदो ? बंधोदयावलिऊणसत्तरिकोडाकोडीसागरोवमपमाणत्तादो । एत्थ विसेसपमाणमंतोमुहुत्तं । एवमोधाणुगमो समत्तो। * एवं सव्वासु गईसु। ७०२. सव्वासु णिरयादिगदीसु एवं चेव उक्कस्सट्ठिदिसंकमप्पाबहुअपरूवणा कायव्वा, विसेसाभावादो त्ति उत्तं होइ । णवरि पंचिंतिरि०अपज्ज०-मणुसअपज. सोलसक०-णवणोक० उक्कस्सद्विदिसंकमो सरिसो थोवो । सम्म०-सम्मामि० उक्कस्सहिदिसं० सरिसो विसे । मिच्छ० उक्क ट्ठिदिसं० विसेसाहिओ । आणदादि जाव सव्वट्ठ त्ति सोलसक०-णवणोक० उक्कस्सद्विदिसं० तुल्लो थोवो । मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि० उक्क० ___ * उससे सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम परस्पर तुल्य होकर विशेष अधिक है। ६७००. क्योंकि इनका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम अन्तर्मुहूर्त कम सत्तर कोड़ाकोड़ीसागरप्रमाण है। यह कषायोंके उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमसे विशेष अधिक है। कितना अधिक है ? अन्तर्मुहूर्त कम तीस कोड़ाकोड़ी सागर अधिक है। * उससे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। ६७०१. क्योंकि यह बन्धावलि और उद्यावलिसे न्यून सत्तर कोडाकोडीसागरप्रमाण है। यहाँपर विशेषका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है। __ इस प्रकार ओघानुगम समाप्त हुआ। * इसी प्रकार सब गतियोंमें अल्पबहत्व है। ___६७०२. नरकादि सब गतियोंमें इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करनी चाहिए, क्योंकि ओघसे इस प्ररूपणामें विशेषता नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । किन्तु इतनी विशेषता है कि पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम परस्पर सहश होकर सबसे स्तोक है। उससे सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम परस्पर सहश होकर विशेष अधिक है। उससे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। आनतसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम परस्पर तुल्य होकर सबसे स्तोक है। उससे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम परस्पर तुल्य होकर विशेष अधिक है । यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442