Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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३१६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ वलियमेत्तफालीओ गालिय चरमफालि संकामणे वावदस्स कोहसंजलणस्स जहण्णओ द्विदिसंकमो होइ त्ति । एदं णिद्वारिय संपहि सेसदोसंजलणाणं पुरिसवेदस्स च एसो चेव भंगो त्ति समप्पणं कुणमाणो मुत्तमुत्तरं भणइ
* एवं माण-मायासंजलण-पुरिसवेदाणं ।
६४३. एदेसिं च कम्माणमेवं चेव जहण्णसामित्तं दायव्वं, सोदएण चढिदस्स खवयस्स अणियट्टिट्ठाणे सगसगवेदगद्धाचरिमसमयणवकबंधचरिमफालिसंकमावत्थाए जहण्णद्विदिसंकमसंभवं पडि विसेसाभावादो। णवरि माणसंजलणस्स अंतोमुहूत्तूणमासपरिमाणाए णवकबंधचरिमफालीए मायासंजलणस्स वि अंतोमुहुत्तपरिहीणद्धमासमेत्तीए णवकबंधचरिमफालीए पुरिसवेदस्स य तदूणट्टवस्समेत्तणवकबंधचरिमफालिविसए जहण्णसामित्तमिदि एसो विसेसलेसो जाणियव्यो ।
8 लोहसंलणस्स जहएणहिदिसंकमो कस्स ? ६६४४. सुगममेदं पुच्छासुत्तं ।।
आवलियसमयाहियसकसायरस खवयस्स। फिर जो एक समय कम एक आवलिप्रमाण फालियोंको गलाकर अन्तिम फालिका संक्रम कर रहा है उसके क्रोजसंज्वलनका जघन्य स्थितिसंक्रम होता है। इस प्रकार क्रोधसंज्वलनके जघन्यस्थितिसंक्रमका निर्णय करके अब शेष दो संज्वलन और पुरुषवेदका जघन्य स्थितिसंक्रमविषयक स्वामित्व इसी प्रकार होता है इस बातका समर्थन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* इसी प्रकार मानसंज्वलन, मायासंज्वलन और पुरुषवेदके जघन्य स्थितिसंक्रमका स्वामित्व जानना चाहिये।
६६४३. इन कर्मोंका भी इसी प्रकार जघन्य स्वामित्व देना चाहिये, क्योंकि स्वोदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपक जीवके अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमें अपने अपने वेदककालके अन्तिम समयमें प्राप्त हुए नवकबन्धकी अन्तिम फालिकी संक्रमावस्थाके प्राप्त होने पर इन कर्मोंका जघन्य स्थितिसंक्रम होता है, इसलिये संज्वलनक्रोधके जघन्य स्थितिसंक्रमके स्वामित्वके कथनसे इनके स्वामित्वके कथनमें कोई विशेषता नहीं है। किन्तु इतनी विशेषता है कि मानसंज्वलनका अन्तर्मुहूर्त कम एक महीनाप्रमाण नवकबन्धकी अन्तिम फालिके प्राप्त होने पर मायासंज्वलनका भी अन्तर्मुहूर्त कम आधे महीनाप्रमाण नवकबन्धकी अन्तिम फालिके प्राप्त होने पर और पुरुषवेदका अन्तर्मुहूर्त कम आठ वर्षप्रमाण नवकबन्धकी अन्तिम फालिके प्राप्त होने पर जघन्य स्वामित्व प्राप्त होता है ऐसा यहां विशेष अभिप्राय जानना चाहिये।
* लोभसंज्वलनका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? ६६४४. यह पृच्छासूत्र सुगम है।
* जिस क्षपक जीवके सकषायभावमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष है उसके लोभसंज्वलनका जघन्य स्थितिसंक्रम होता है।
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