Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 331
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ ओकड्डणासंकमसंभवादो जहण्णभावाणुववत्तीदो ति चे ? ण, संकमपाओग्गपढमट्ठिदि गालिय आवलियपविट्ठपढमद्विदियस्स जहण्णसामित्तविहाणेण तद्दोसपरिहारो । पढमद्विदीए संकमाभावे वि जहिदिबहुगो होइ त्ति णासंकणिजं, एत्थ जद्विदिविवक्खाए अभावादो, णिसेयट्ठिदीए चेव पाहणियादो । तम्हा सोदएण वा परोदएण वा पयदसामित्तमविरुद्धं सिद्धं । ® गर्नुसयवेदस्स जहणणहिदिसंकमो कस्स ? ६४८. सुगमं। * गर्बुसयवेदोदयक्खवयस्स तस्स अपच्छिमद्विविखंडयं संछुहमाणयस्स तस्स जहएणयं । ६ ६४९. एत्थ णqसयवेदोदयखवयस्सेव पयदजहण्णसामित्तं होइ त्ति अण्णजोगववच्छेदेण सेसवेदोदयक्खवयाणं सामित्तसंबंधपडिसेहो कायव्यो। किमटुं तप्पडिसेहो कीरदे ? ण, तत्थ णउंसयवेदस्स पुत्वमेव अंतोमुहुत्तमत्थि त्ति खीयमाणस्स चरिमद्विदि शंका-यहाँ परोदयसे ही स्वामित्व प्राप्त करना चाहिये, क्योंकि स्वोदयसे प्रथम स्थितिका अपकर्षणसंक्रम सम्भव होनेसे वहाँ जघन्यपना नहीं बन सकता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि संक्रमके योग्य प्रथम स्थितिको गला कर जिसके प्रथम स्थिति आवलिके भीतर प्रविष्ट हो गई है उसके जघन्य स्वामित्वका विधान करनेसे उक्त दोषका परिहार हो जाता है। शंका-प्रथम स्थितिके संक्रमका अभाव हो जाने पर भी यस्थिति बहुत होती है, इसलिये स्वोदयसे चढ़े हुए जीवके जघन्य स्वामित्व नहीं बन सकता है ? समाधान—ऐसी आशंका करना ठीक नहीं है, क्योंकि यहाँ पर यत्स्थितिकी विवक्षा नहीं की गई है। किन्तु निषेकस्थितिकी ही प्रधानता है, इसलिये स्वोदय या परोदय किसी प्रकार भी चढ़े हुए जीवके प्रकृत स्वामित्वके प्राप्त होनेमें कोई विरोध नहीं आता है यह बात सिद्ध हुई। * नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है। ६६४८ यह सूत्र सुगम है। * जो नपुंसकवेदके उदयवाला क्षपक जीव अन्तिम स्थितिकाण्डकका संक्रम कर रहा है उसके नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम होता है ? 6६४६. यहां नपुंसकवेदके उदयवाले क्षपक जीवके ही प्रकृत जघन्य स्वामित्व होता है इस प्रकार अन्ययोगव्यवच्छेदद्वारा शेष वेदोंके उदयवाले क्षपक जीवोंके प्रकृत स्वामित्वका निषेध करना चाहिए। शंका-किस लिये यहां अन्य वेदके उदयवाले क्षपक जीवोंके प्रकृत जघन्य स्वामित्वका निषेध करते है ? समाधान नहीं, क्योंकि अन्य वेदके उदयसे क्षपकनेणि पर चढ़े हुए जीवके नपुसकवेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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