Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
गा०५८] उत्तरपयडिहिदिसंकमे णाणाजीवेहिं भंगविचओ ३३७
६७७. तेसिं दोण्हमणंतरपरूविदमट्ठपदं काऊण तदो उक्कस्सओ भंगविचओ पुव्वं कायव्वो, जहा उद्देसो तहा णिदेसो ति णायादो । सो च कथं कायव्यो ? जहा उक्कस्सिया हिदिउदीरणा भंगविचयविसयां तहा कायव्यो, तत्तो एदस्स भेदाणुवलंभादो। संपहि एदेण समप्पिदत्थविवरणट्ठमुच्चारणं वत्तइस्सामो । तत्थ दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वपयडीणं उक्कस्सहिदीए सिया सव्वे असंकामया । सिया एदे च संकामओ च । सिया एदे च संकामया च । एवं तिण्णि भंगा । अणुक्कस्ससंकामयाणं पि विवजासेण तिण्णि भंगा कायव्वा । एवं सव्वासु गईसु । णवरि मणुसअपज० सव्वपयडीणमुक्क०-अणु०संका० अट्ठ भंगा० । एवं जाव० ।
8 एत्तो जहएणपदभंगविचओ।।
६७८. उक्कस्सपदभंगविचयादो अणंतरं जहण्णपदभंगविचयो परूवणाजोग्गो त्ति अहियारसंभालणसुत्तमेदं । तण्णिदेसकरणट्ठमुत्तरसुत्तावयारो
8 सव्वासिं पयडीणं जहएणहिदिसंकामयस्स सिया सवे जीवा असंकामया, सिया असंकामया च संकामो च, सिया असंकामया च संकामया च।
६६७७. उन दोनोंका अनन्तर पूर्वकथित अर्थपद करके अनन्तर उत्कृष्ट भङ्गविचय पहिले करना चाहिए, क्योंकि उद्देशके अनुसार निर्देश किया जाता है ऐसा न्याय है।
शंका-वह किसप्रकार करना चाहिए ?
समाधान—जिस प्रकार भंगविचयविषयक उत्कृष्ट उदीरणा की गई है उस प्रकार करना चाहिए, क्योंकि उससे इसमें भेद नहीं उपलब्ध होता।
अब इससे प्राप्त हुए अर्थका विवरण करने के लिए उच्चारणाको बतलाते हैं। प्रकृतमें निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघसे सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके सब जीव कदाचित् असंक्रामक हैं। कदाचित् बहुत जीव असंक्रामक हैं और एक जीव संक्रामक है । कदाचित् बहुत जीव असंक्रामक है और बहुत जीव संक्रामक हैं। इस प्रकार तीन भंग होते हैं । अनुत्कृष्ट संक्रामकोंके भी उलटकर तीन भंग करने चाहिए। इसी प्रकार सब गतियोंमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट संक्रामकोंके आठ भंग होते हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
* इससे आगे जघन्यपदभंगविचयका प्रकरण है।
६६७८. उत्कृष्ट पदभंगविचयके बाद जघन्य पदभंगविचय प्ररूपणायोग्य है इस प्रकार अधिकारकी सम्हाल करनेवाला यह सूत्र है। अब इसका निर्देश करनेके लिए आगेके सूत्रका अवतार करते हैं
* सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिसंक्रमके कदाचित सब जीव असंक्रामक हैं। कदाचित् बहुत जीव असंक्रामक हैं और एक जीव संक्रामक है । कदाचित् बहुत जीव असंक्रामक हैं और बहुत जीव संक्रामक हैं ।
१. ता० प्रतौ -विचयविचया इति पाठः ।
४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org