Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 339
________________ ३२६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ समयूणं, उक्क• अंतोमु० । सम्मत्त-सम्मामि० उक्क० डिदिसं० जहण्णु० एयसमओ । अणु० जह० एयसमओ, उक्क० अंतोमु० । एवं मणुसअपजत्तएस ।। ___ ६६२. आणदादि जाव उवरिमगेवजा त्ति मिच्छ०-बारसक०-णवणोक० उक्क० हिदिसं० जहण्णु० एयसमओ। अणु० जह० जहण्णहिदी समयूणा, उक्क० सगढिदी । सं०-सम्मामि०'अणंताणु०४ उक्क० द्विदिसं० जहण्णुक्क० एयस० । अणुक्क० ज० एयस०, उक्क० सगहिदी । अणुद्दिसादि सव्वट्ठा ति एवं चेव । णवरि सम्मामि० मिच्छत्तभंगो । अणंताणु०४ उक्क० हिदिसं० जहण्णु० एयसमओ । अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० सगहिदी । एवं जाव० । एवमुक्कस्सकालाणुगमो समत्तो। * एत्तो जहएणद्विदिसंकमकालो। ६६६३. एत्तो उक्कस्सट्ठिदिसंकमकालविहासणादो अणतरमवसरपत्तो जहण्णट्ठिदिसंकमकालो विहासियव्वो त्ति पइजावयणमेदं । काल एक समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिये। ६६६२. आनतादिकसे लेकर उपरिम अवेयक तकके देवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका जघन्य काल एक समय कम जघन्य स्थितिप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रार कामकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें इसी प्रकार है। किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मिथ्यात्वके समान है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। विशेषार्थ-पूर्वमें ओघसे और नरकगतिमें कालका स्पष्टीकरण कर आये हैं। उसे ध्यानमें रखकर और अपने अपने स्वामित्वको जानकर तिर्यञ्चगति आदिमें कालका स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए । खास विशेषता न होनेसे यहाँ अलगसे स्पष्टीकरण नहीं किया है । इस प्रकार उत्कृष्ट कालानुगम समाप्त हुआ। * अब आगे जघन्य स्थितिसंक्रमके कालका अधिकार है।। ६६६३. अब इस उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमके कालका व्याख्यान करनेके बाद अवसर प्राप्त जघन्य स्थितिसंक्रमके कालका व्याख्यान करना चाहिये इस प्रकार यह प्रतिज्ञावचन है। १. श्रा०प्रतो समयूणा, उक्क० द्विदिसंकमो [ उक्कस्सद्विदी ] [सम्मत्त ] सम्मामि० इति पाठः! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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