Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० ४५]
संतकम्मट्ठाणेसु संकमट्ठाणपरूवणा संकमट्ठाणमुप्पजइ २ । एवं सत्तावीससंतकम्मे णिरुद्धे दोण्णि चेव संकमट्ठाणाणि होति ।
३२२. संपहि छब्बीसाए उच्चदे-अणादियमिच्छाइट्ठिस्स सादिछव्वीससंतकम्मियस्स वा छब्बीससंतकम्मं होऊण पणुवीससंकमट्ठाणमेक्कं चैव लब्भदे, तत्थ पयारंतरसंभवाभावादो।
___ ३२३. संपहि चउवीससंतकम्मियस्स संकमट्ठाणगवेसणा कीरदे-अणंताणुबंधिविसंजोयणापरिणदसम्माइद्विम्मि चउवीससंतकम्मं होऊण तेवीससंकमो होइ १ । पुणो तेणेव उवसमसेढिमारूढेणंतरकरणाणंतरमाणुपुव्वीसंकमे कदे वावीससंकमो होइ २ । तेणेव णqसयवेदोवसमे कदे इगिवीससंकमो जायदे ३ । इस्थिवेदोवसमे वीससंकमो होइ ४ । तस्सेव छण्णोकसायाणमुवसामणमस्सियूण चोदससंकमो होइ ५। पुरिसवेदोवसामणाए तेरससंकमट्ठाणमुप्पजइ ६ । दुविहकोहोवसमेणेकारससंकमो होइ ७ । कोहसंजलगोवसममस्सियूण दसण्हं संकमो जायदे ८। दुविहमाणोवसमेण अट्ठण्हं संकमो होइ ९ । माणसंजलणोवसामणाए सत्तण्हं संकमो जायदे १०। दुविहमायोवसममस्सियूण पंचसंकमो जायदे ११ । मायासंजलणोवसमे चउण्हं संकमो होइ १२ । दुविहलोहोवसामणाए मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्तपयडीणं दोण्हं चेव संकमो जायदे १३ ।
सत्ताईस प्रकृतिक सत्कर्मके साथ पच्चीस प्रकृतिक संक्रमस्थान उत्पन्न होता है २ । इस प्रकार सत्ताईस प्रकृतिक सत्कर्मके रहते हुए दो ही संक्रमस्थान होते हैं।
$ ३२२. अब छब्बीस प्रकृतिक सत्कर्मवालेके कितने संक्रमस्थान होते हैं यह बतलाते हैंअनादिमिथ्यादृष्टिके या छब्बीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले सादि मिथ्याष्टके छब्बीस प्रकृतिक सत्कर्मके साथ केवल एक पच्चीस प्रकृतिक संक्रमस्थान प्राप्त होता है, क्योंकि यहां पर और कोई दूसरा प्रकार सम्भव नहीं है ।
6 ३२३. अब चौबीस प्रकृतिक सत्कर्मवाले जे वके संक्रमस्थानोंका विचार करते हैं-जिसने अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना कर दी है ऐसे सम्यग्दृष्टि जीवके चौबीस प्रकृतिक सत्कर्मके साथ तेईस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है १ । फिर उसी जीवके उपशमश्रेणि पर चढ़कर अन्तकरणके बाद आनुपूर्वी संक्रमका प्रारम्भ करने पर बाईस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है २। फिर उसी जीवके नपुंसकवेदका उपशम कर लेने पर इक्कीस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ३ । स्त्रीवेदका उपशम कर लेने पर बीस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ४ । उसीके छह नोकषायोंके उपशमका आय लेकर चौदह प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ५ । पुरुषवेदका उपशम हो जानेपर तेरह प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ६ । दो प्रकारके क्रोधके उपशम हो जानेसे ग्यारह प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है । क्रोधसंज्वलनके उपशमका आश्रय लेकर दस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ८ । दो प्रकारके मानका उपशम हो जानेसे आठ प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है । मानसंज्वलनका उपशम हो जाने पर सात प्रकृतिक संक्रमस्थान उत्पन्न होता है १० । दो प्रकारकी मायाके उपशमका आश्रय लेकर पांच प्रकृतिक संक्रमस्थान उत्पन्न होता है ११ । मायासंज्वलनका उपशम होने पर चार प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है १२। और दो प्रकारके लोभका उपशम होने पर मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व
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