Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
असंखे० भागो छोदस० देसूणा । पढमाए खेत्तं । विदियादि जाव सत्तमा त्ति एवं चेव । वरि सगपोसणं कायव्वं । सत्तमीए भुज० खेत्तं । तिरिक्खेसु भुज० लोग० असंखे०भागो सत्तोस० देसूणा । अप्पद० लोगस्स असंखे० भागो सव्वलोगो वा । अवट्ठि ० खेत्तं । पंचिदियतिरिक्खतिय ३ भुज० तिरिक्खोधो । अप्पद० - अवट्टि० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । एवं मणुसतिए ३ । णवरि अवत्त० ओघभंगो । पंचि ० तिरि०अपज्ज० - मणुसअपज्ज० अप्पद० - अवडि० पंचिंदियतिरिक्खभंगो । सव्वपदपरिणददेवे हि अट्ट - णवचोदस० । एवं भवणादि जाव अच्चुदा ति । णवरि सगपोसणं । उवरि खेत्तं । एवं जाव० ।
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| ४७७. काला० दुविहो णिदेसो- ओघेण आदेसेण य ओघेण भुज०अप्पद० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । अवडि० सव्वद्धा । अवत्त० जह० एयसमओ, उक्क० संखेज्जा समया । एवं सव्वणेरड्य० - सव्वतिरिक्ख- सव्वदेवाति । णवरि अवत्त० अस्थि । पंचिं० तिरि० अपज्ज० अणुद्दिसादि जाव अवराजिदा ति भुज० णत्थि । मणुसेसु भुज० जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया । सेसमोघ
में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पहिली पृथिवीमें स्पर्शन क्षेत्रके समान है । दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक स्पर्शन इसी प्रकार है । किन्तु सर्वत्र अपने अपने स्पर्शनका कथन करना चाहिये । सातवीं पृथिवीमें भुजगारपदका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । तिर्यञ्चों में भुजगार पदवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम सात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अल्पतर पदवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवस्थित पदका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक भुजगार पदका स्पर्शन सामान्य तिर्यञ्चों के समान है । अल्पतर और अवस्थित पदवाले जीवोंने लोक के असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिये | किन्तु इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य पदका स्पर्शन ओघ के समान है । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में अतर और अवस्थित पदका भंग पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों के समान है । सब पदोंसे परिणत हुए देवोंने त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भागप्रमाण और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर अच्युत कल्पतकके देशों में जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिये | इससे आगे देवोंमें स्पर्शन क्षेत्र के समान है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये ।
$ ४७७. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ निर्देश और आदेशनिर्देश । की अपेक्षा भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अवस्थित पदका काल सर्वदा है । अवक्तव्य पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च और सब देवों में जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त और अनुदिशसे लेकर अपराजित तक्के देवोंमें भुजगार पद नहीं है । मनुष्योंमें भुजगार पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । शेष पदोंका काल
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