Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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२५६ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ बैधगो ६ णिक्खेवपमाणविसयणिद्धारणटुं पुच्छासुत्तमाह
* उक्कस्सो पुण णिक्खेवो केत्तिो ? ६५२४. सुगममेदं पुच्छावकं ।।
जात्तिया उक्कस्सिया कम्महिदी उक्कस्सियाए भाषाहाए समयुत्तरावलियाए च ऊणा तत्तियो उक्कस्सो णिक्खेवो ।
५२५. समयाहियबंधावलियं गालिय उदयावलियबाहिरहिदहिदीए उक्कड्डिजमाणाए एसो उक्कस्सणिक्खेवो परूविदो परिप्फुडमेव, तिस्से समयाहियावलियाए उक्कस्साबाहाए च परिहीणुकस्सकम्मट्ठिदिमेत्तुक्कस्सणिक्खेवदंसणादो । तं जहाउक्कस्सट्ठिदि बंधिय बंधावलियं गालिय तदणंतरसमए आबाहाबाहिरहिदिहिदपदेसग्गमोकड्डिय उदयावलियबाहिरे णिसिंचदि। एत्थ विदियट्टिदीए ओकड्डिय णिक्खित्तदव्वमहिकयं, पढमसमयणिसित्तस्स तदणंतरसमए उदयावलियम्भंतरपवेसदसणादो'। तदो विदियसमए उक्कस्ससंकिलेसवसेण उक्कस्सद्विदि बंधमाणो विवक्खियपदेसग्गमुक्कडंतो आबाहाबाहिरपढमणिसेयप्पहुडि ताव णिक्खिवदि जाव समयाहियावलियमेत्तेण अग्गद्विदिमपत्तो त्ति । कुदो एवं ? तत्तो उवरि तस्स विवक्खियकम्मपदेसस्स सत्तिद्विदीए है। इस प्रकार इसका कथन करके अब उत्कृष्ट निक्षेपके प्रमाणका निश्चय करनेके लिये आगेका पृच्छासूत्र कहते हैं
* उत्कृष्ट निक्षेप कितना है। $ ५२४. यह पृच्छासूत्र सुगम है।
* उत्कृष्ट आवाधा और एक समय अधिक एक आवलि इनसे न्यून जितनी उत्कृष्ट कर्मस्थिति है उतना उत्कृष्ट निक्षेप है।
$ ५२५. एक समय अधिक बन्धावलिको गलाकर उदयावलिके बाहर स्थित स्थितिका उत्कर्षण होने पर यह उत्कृष्ट निक्षेप कहा है यह बात स्पष्ट है, क्योंकि उस स्थितिका एक समय अधिक एक आवलि और उत्कृष्ट आबाधासे न्यून उत्कृष्ट कर्मस्थितिप्रमाण उत्कृष्ट निक्षेप देखा जाता है । खुलासा इस प्रकार है-उत्कृष्ट स्थितिको बाँधकर और बन्धावलिको गलाकर तदनन्तर समयमें आबाधाके बाहरकी स्थितिमें स्थित कर्मपरमाणुओंका अपकर्षण करके उदयावलिके बाहर निक्षेप करता है । यहाँ पर अपकर्षण करके उदयावलिके बाहर दूसरी स्थितिमें निक्षिप्त हुआ द्रव्य विवक्षित है, क्योंकि उदयावलिके बाहर प्रथम समयमें जो द्रव्य निक्षिप्त होता है उसका तदनन्तर समयमें उदयावलिके भीतर प्रवेश देखा जाता है। फिर दूसरे समयमें उत्कृष्ट संक्लेशके कारण उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला कोई एक जीव विवक्षित प्रदेशाग्रका उत्कर्षण करके उन्हें श्राबाधाके बाहर प्रथम निषेकसे लेकर अग्रस्थितिसे एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण स्थान नीचे उतर कर जो स्थान प्राप्त हो वहाँ तक निक्षिप्त करता है।
शंका-ऐसा क्यों है ? समाधान—क्योंकि इससे ऊपर उस विवक्षित प्रदेशाग्रकी शक्ति नहीं पाई जाती है। १. ता० -श्रा प्रत्योः -पदेसदसणादो इति पाठः।
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