Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 298
________________ ० ५८ ] हिदिक कालो २८५ खुद्दा० समयूर्ण, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो | आणदादि जाव सव्वट्टे त्ति उक्क० एयसमत्रो, उक्क० संखेज्जा समया । अणु० सव्वद्धा । एवं जाव० । जह० मोह० $ ५७४, जहणए पदं । दुविहो णिद्देसो — ओघेण आदेसेण य । ओघेण ० जह० डिदिसंका० केव० ? जह० एयसमओ, उक्क० संखेजा समया । अज० सन्वद्धा । एवं मणुसतिय० । विदियादि जाव छट्टि त्ति जोदिसियादि जाव सव्वाति च । ग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण है । आनत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिये । बिशेषार्थ- एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त बतलाया है । यतः उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले मनुष्य संख्यात होते हैं, अतः इनमें उत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तसे अधिक नहीं प्राप्त होता । यतः उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अविनाभावी है अतः मनुष्यत्रिक में उत्कृष्ट स्थिति के संक्रामकका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त बतलाया है । तथा मनुष्यत्रिक में अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीव सदा पाये जाते हैं, अतः इनका काल सर्वदा बतलाया है । मनुष्य अपर्याप्तकों में उत्कृष्ट स्थिति के संक्रामकोंका जवन्य और उत्कृष्ट काल तो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकों के समान घटित कर लेना चाहिये । हां इनके अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंके कालमें कुछ विशेषता है । बात यह है कि यह सान्तर मार्गणा है और इसका जघन्य काल खुद्दाभत्रग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसीसे यहाँ ऋनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंका. जघन्य और उत्कृष्ट काल उक्तप्रमाण प्राप्त होता है । यहाँ जघन्य कालमें जो एक समय कम किया है सो वह उत्कृष्ट स्थितिके संक्रमकी अपेक्षासे किया है। आनतादिकमें उत्कृष्ट स्थिति उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें सम्भव है । किन्तु यहाँ उत्कृष्ट स्थितिवाले मनुष्य ही उत्पन्न होते हैं और वे संख्यात होते हैं, अतः यहाँ उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय बतलाया है । यहाँ अनुत्कृष्ट स्थिति के संक्रामकोंका काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है। इसी प्रकार अपनी-अपनी विशेषताको जानकर अनाहारक मार्गणा तक यथायोग्य उत्कृष्ट और अनुत्कृष्टस्थितिके संक्रामकोंका काल जान लेना चाहिये । ६ ५७४. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है - प्रोघनिर्देश और प्रदेशनिर्देश । घसे मोहनीयकी जघन्य स्थितिके संक्रामकों का कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अजघन्य स्थितिके संक्रामकोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार मनुष्यत्रिकतें, दूसरी पृथिवीसे लेकर छठी पृथिवी तक नारकियोंमें और ज्योतिषी देवोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक देवोंमें जानना चाहिये ? विशेषार्थ — घले मोहनीयका जघन्य स्थितिसंक्रम क्षपक जीवके सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थानमें एक समय अधिक एक आवलि कालके शेष रहने पर होता है । यतः क्षपकश्रेणि पर चढ़ने का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है अतः ओघसे जघन्य स्थितिके संक्रामकका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है । श्रघसे अजघन्य स्थितिके संक्रामकोंका काल सर्वदा है | यह स्पष्ट ही है । मूलमें जो मनुष्यत्रिक, दूसरी पृथिवीसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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