Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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२४६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ 8 तेण परं णिक्खेवो वडइ । अइच्छावणा आवलिया चेव ।।
$ ५०४. तत्तो परं णिक्खेवो बड्डइ, जहण्णणिक्खेवादो समयुत्तरादिकमेण जावुकस्सणिक्खेवो ताव वड्डीए विरोहाभावादो । अइच्छावणा आवलिया चेव, णिव्वाघादपरूवणाए संतपयडिस्स पजत्तादो । संपहि जहण्णणिक्खेवो समयुत्तरकमेण वढतओ केत्तियमुवरि चढिऊणावलियमेत्तो होइ ति पुच्छिदे उच्चदे-उदयसमयप्पहुडि समयाहियदोआवलियमेत्तमुवरिं घेत्तूण तदित्थसमयावद्विदह्रिदीए अइच्छावणा णिक्खेवो च आवलियमेत्तो होइ । तप्पजंताणं च सव्वासिमुदयावलियबाहिरद्विदीणमुदयावलियभंतरे चेव पदेसणिक्खेवो ति तदोकड्डणा असंखेजलोगपडिभागीया । तं कधं ? विवक्खिदह्रिदिपदेसग्गमोकड्डुक्कड्डणभागहारगुणिदासंखेज लोगभागहारेण खंडिय तत्थेयखंडं घेत्तूण एत्थोवट्टदि । तदो विसेसहीणं जा उदयावलियचरिमसमओ त्ति । एस कमो जासिमुदयावलियगब्भे चेव पदेसणिक्खेवो तासिं द्विदीणं परूविदो। एत्तो उवरि णाणत्तं वत्तइस्सामो। तं जहा-तदणंतरोवरिमद्विदि दिवड्डगुणहाणिगुणिदोकड्डुक्कड्डणभागहारेण खंडिय तत्थेयखंडमेत्तमेथोकड्डणदव्वं होइ । पुणो एदमसंखेजलोगेहि भागं घेत्तूणेयभागमुदयावलियभंतरे देंतो उदए बहुअं देदि । तत्तो विसेसहीणं । एवं ताव जाव
* उससे आगे निक्षेप बढ़ता है और अतिस्थापना एक आवलिप्रमाण ही रहती है।
६५०४. फिर उससे आगे निक्षेप बढ़ता है, क्योंकि उत्कृष्ट निक्षेपके प्राप्त होने तक जघन्य निक्षेपसे आगे एक एक समय अधिकके क्रमसे निक्षेपकी वृद्धि होने में कोई विरोध नहीं आता है। किन्तु अतिस्थापना एक आवलि ही रहती है, क्योंकि नियाघात प्ररूपणामें सत्त्वप्रकृति पर्याप्त है । जघन्य निक्षेप एक एक समय बढ़ते हुये कितने समय आगे जाकर वह एक श्रावलिप्रमाण होता है ऐसा पछने पर कहते हैं-उदय समयसे लेकर एक समय अधिक दो प्रावलिममाण स्थान आगे जाकर वहाँ अन्तिम समयमें जो स्थिति अवस्थित है उसके प्राप्त होनेपर अतिस्थापना और निक्षेप ये दोनों ही एक प्रावलिप्रमाण होते हैं। वहाँ तक उदयावलिके बाहर जितनी भी स्थितियाँ हैं उन सब स्थितियों के प्रदेशोंका उदयावलिके भीतर ही निक्षेप होता है। तथा इन स्थितियोंका अपकर्षण असंख्यातलोकप्रमाण प्रतिभागके क्रमसे होता है। वह कैसे—विवक्षित स्थितिके कर्म परमाणुओंमें अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारसे गुणित असंख्यात लोकप्रमाण भागहारका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे उसका यहाँ अपवर्तन होता है । उसमें भी उदय समयमें जो द्रव्य प्राप्त होता है उससे उदयावलिके अन्तिम समय तक विशेष हीन विशेष हीन द्रव्य प्राप्त होता है। किन्तु यह क्रम जिन स्थितियोंका द्रव्य उदयावलिके भीतर ही निक्षिप्त होता है उन्हीं स्थितियों के सम्बन्धमें कहा है। अब इससे आगे नानात्वको बतलाते हैं । यथा-तदनन्तर आगे की स्थितिमें डेढ़ गुणहानिसे गुणित अपकर्षणउत्कर्षण भागहारका भाग देने पर जो एक भागप्रमाण द्रव्य लब्ध आता है उतना यहाँ अपकर्षणको प्राप्त हुआ द्रव्य होता है । पुनः इसमें असंख्यात लोकका भाग देने पर जो एक भागप्रमाण द्रव्य प्राप्त होवे उसे उदयावलिके भीतर निक्षिप्त करता हुआ उदय समयमें बहुत देता है । उससे आगे
१. ता०-श्रा प्रत्योः तेण पदणिक्खेवो इति पाठः । २. प्रा०-ता प्रत्योः त्योवं इति पाठः ।
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