Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० ५८ ]
द्विदिकमे का मीमांसा
तस्स पदेसग्गस्स
* तत्थ जं पढमसमए उक्कीरदि पदेसग्गं अवलियाए अइच्छावणा ।
९ ५०९. तत्थ तम्मि ट्ठिदिखंडए पारद्धे अंतोमुहुत्तमेत्ती उकीरणद्धा होइ तत्तिय - मेत्ताओ च विदिखंडयफालीओ पडिसमयघादणपडिबद्धाओ । तत्थ पढमसमए जं पदेसग्गमुक्कीरिज तस्स अइच्छावणा आवलियाए परिछिण्णपमाणा भवदि । अजवि सव्वासिं खंडयभावेण गहिदाणं द्विदीणं सुण्णत्ताभावेण वाघादाभावादो । तदो णिव्वाघादविसया चैव परूवणा एत्थ वि कायव्वा ।
* एवं जाव दुचरिमसमयअणुकिरण खंडगं ति ।
५१०. एवं ताव दव्वं जाव दुचरिमसमयाणुक्किण्णयं द्विदिखंडयं ति उत्तं हो । चरिमसमए पुण णाणत्तमत्थि ति पदुष्पायिदुमुवरिमो सुत्तविण्णासो – * चरिमसमए जा खंडयस्स अग्गट्ठिदी तिस्से अइच्छावणा खंडयं समयूं ।
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$ ५११. उक्कस्सट्ठिदिखंडयघादचरिमसमए जा सा खंडयस्स अग्गहिदी तिस्से अइच्छावणा समयूणखंडयमेत्ती होइ । कुदो ? तम्मि समए डिदिखंडयंतब्भाविणीणं सव्वासिमेव द्विदीर्ण वाघादेण हेट्ठा घादणदंसणादो । तम्हा एदिस्से द्विदीए समयूणुकस्सखंडयमेत्ती अइच्छावणा होइ ति सिद्धं । कुदो समयूणत्तं ? अग्गट्ठिदीए कड्डिञ्ज
* वहाँ जो प्रदेशाग्र प्रथम समयमें उत्कीर्ण होता है उस प्रदेशाग्रकी अतिस्थापना एक आवलिप्रमाण होती है ।
५०६. वहाँ उस स्थितिकाण्डकका प्रारम्भ करने पर उत्कीरण काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होता है और प्रति समय होनेवाले घातसे सम्बन्ध रखनेवालीं स्थितिकाण्डककी फालियाँ भी उतनी ही होती हैं । उसमेंसे प्रथम समयमें जो प्रदेशाम उत्कीर्ण होता है उसकी प्रतिस्थापना एक आवलिप्रमाण होती है, क्योंकि काण्डक रूप से ग्रहण की गई इन सब स्थितियोंका अभी अभाव नहीं होनेसे इनका व्याघात नहीं होता, इसलिए यहाँ पर भी निर्व्याघातविषयक प्ररूपणा करनी चाहिये ।
* इस प्रकार अनुत्कीर्ण स्थितिकाण्डकके द्विचरम समयके प्राप्त होने तक जानना चाहिए ।
$ ५१०. इस प्रकार द्विचरम समयवर्ती अनुत्कीर्ण स्थितिकाण्डकके प्राप्त होने तक जानना चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य है । किन्तु अन्तिम समय में कुछ भेद है इसलिये उसका कथन करने के लिये आगे सूत्रका निक्षेप करते हैं
* अन्तिम समय में काण्डककी जो अग्रस्थिति है उसको प्रतिस्थापना एक समय कम काण्डकप्रमाण होती है ।
$ ५११. उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकघात के अन्तिम समयमें जो काण्डककी उसकी प्रतिस्थापना एक समयकम काण्डकप्रमाण होती है, क्योंकि उस अन्तिम काण्डक भीतर आई हुई सभी स्थितियोंका व्याघातके कारण घात देखा जाता
है,
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स्थिति होती है।
समय में स्थितिइसलिये इस
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