Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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२१८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ४२८. एत्थ एक्किस्से संकामयाणं जहण्णकालो कोह-माणाणमण्णदरोदएण चढिदाणं मायासंकामयाणमणणुसंघिदसंताणाणमंतोमुहुत्तमेत्तो होइ। उकस्सकालो पुण मायासंकामयाणमणुसंधिदपवाहाणं होइ त्ति वत्तव्वं । एवमोघो समत्तो। ___४२९. आदेसेण णेरइय० सव्वपदसंका० सव्वद्धा। एवं पढमपुढवि-तिरिक्खपंचिंदियतिरिक्खदुग-पंचिं०तिरि०अपज्ज०-देवगदिदेवा सोहम्मादि जाव सव्वट्ठसिद्धि त्ति । विदियादि जाव सत्तमा त्ति एवं चेव । णवरि २१ संका० जह० एयसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । एवं जोणिणी-भवण-वाण-जोदिसिया त्ति। मणुसतिए ओघभंगो । मणुसअपज० सव्वपदाणं जह० एयसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । एवं जाव०।
* पाणाजीवेहि अंतरं। ४३०. सुगमं ।
* वावीसाए तेरसपहं बारसण्हं एकारसण्हं दसराहं चदुण्हं तिण्हं दोण्हमेकिस्से एदेसिं णवण्हं ठाणाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ?
४३१. सुगमं । * जहणणेण एयसमो, उक्कस्सेण छम्मासा ।
६४२८. यहाँ पर एक प्रकृतिक संक्रामकोंका जघन्य काल क्रोध और मानमें से. अन्यतर प्रकृतिके उदयसे चढ़े हुए तथा माया प्रकृतिका संक्रम करनेवाले जीवोंके प्राप्त हुए प्रवाहकी अपेक्षा किये बिना अन्तर्मुहूर्त होता है । परन्तु उत्कृष्ट काल अविच्छिन्न प्रवाहकी विवक्षासे माया प्रकृतिका संक्रम करनेवाले जीवोंके कहना चाहिये । इस प्रकार ओघ प्ररूपणा समाप्त हुई।
४२६. आदेशसे नारकियोंमें सब पदोंके संक्रामक जीवोंका काल सर्वदा है। इसी प्रकार पहिली पृथिवी, सामान्य तिर्यश्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चद्विक, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त, देवगतिमें सामान्य देव और सौधर्म कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें जानना चाहिए । दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि २१ प्रकृतियों के संक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार योनिनी तिर्यश्च, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें जानना चाहिए । मनुष्यत्रिकमें ओघके समान भङ्ग है। मनुष्य अपर्याप्तकों में सब पदोंके संक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
* अब नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकालका अधिकार है। $ ४३०. यह सूत्र सुगम है।
* बावीस, तेरह, बारह, ग्यारह, दस, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक इन नौ स्थानोंके संक्रामकोंका अन्तरकाल कितना है ?
६४३१. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अंतर एक समय है और उत्कृष्ट अंतर छः महीना है।
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