Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० ५८ ] पयडिसंकमट्ठाणाणं अप्पाबहुअं
२२५ 3 दोण्हं संकामया विसेसाहिया ।
६ ४५२. एक्किस्से संकमणकालादो दोण्हं संकामयकालस्स विसेसाहियत्तोवलद्धीदो।
* दसरहं संकामया विसेसाहिया ।
४५३. माणसंजलणखवणद्धादो विसेसाहियछण्णोकसायक्खवणद्धाए लद्धसंचयत्तादो ।
* एकारसएह संकामया विसेसाहिया । ४५४. छण्णोकसायक्खवणद्धादो सादिरेयइत्थिवेदक्खवणद्धासंचयस्स संगहादो। * बारसपहं संकामया विसेसाहिया।
४५५. तत्तो विसेसाहियणqसयवेदक्खवणद्धाए संकलिदसरूवत्तादो। * तिएहं संकामया संखेज्ज गुणा ।
४५६. अस्सकण्णकरणकिट्टीकरण-कोहकिट्टीवेदगकालपडिबद्धाए तिण्हं संकामणद्धाए णवंसयवेदक्खवणकालादो किंचूणतिगुणमेत्ताए संकलिदसरूवत्तादो ।
8 तेरसण्हं संकामया संखेजगुणा । * उनसे दो प्रकृतियोंके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं।
६४५२. क्योंकि एक प्रकृतिके संक्रमकालसे दो प्रकृतियोंका संक्रमकाल विशेष अधिक उपलब्ध होता है।
* उनसे दस प्रकृतियोंके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं ।
६४५३. क्योंकि मानसंज्वलनके क्षपणकालसे जो विशेष अधिक छह नोकषायोंका क्षपण. काल है। उसमें इनका संचय प्राप्त होता है।
* उनसे ग्यारह प्रकृतियोंके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं।
४५४. क्योंकि छह नोकषायोंके क्षपणकालसे साधिक स्त्रीवेदके क्षपणकालमें संचित हुए जीवोंका यहाँ संग्रह किया गया है।
* उनसे बारह प्रकृतियोंके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं।
६४५५. क्योंकि स्त्रीवेदके क्षपणकालसे विशेष अधिक नपुसकवेदके क्षपणकालमें इनका संचय होता है।
* उनसे तीन प्रकृतियोंके संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं । - ६४५६. क्योंकि जो तीन प्रकृतियोंका संक्रमकाल है वह अश्वकर्णकरणकाल, कृष्टीकरण काल और क्रोधकृष्टिवेदककाल इन तीनोंसे सम्बद्ध है जो कि नपुंसकवेदके क्षपणाकालसे कुछ कम तिगुना है, अतः इसमें संचित हुए जीव संख्यातगुणे होते हैं।
* उनसे तेरह प्रकृतियोंके संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं।
१. ता...श्रा प्रत्योः संगलिदसरूवत्तादो इति पाठः। २. श्रा०प्रतौ -वेदे क्खवणकालादो इति पाठः।
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