Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० ५८] पयडिसकमट्ठाणाणं अप्पाबहुअं
२२७ पसजदे, कालगुणयारस्स तहाभावोवलंभादो त्ति ? ण एस दोसो, उवक्कममाणजीवपाहम्मेण असंखेजगुणत्तसिद्धीदो । तं जहा–खइयसम्माइट्ठीणमेयसमयसंचओ संखेजजीवमेत्तो। चउवीससंतकम्मिया पुण उक्स्से ण पलिदो० असंखे०भागमेत्ता एयसमए उवक्कमंता लब्भंति । तम्हा तेहितो एदेसिमसंखे०गुणत्तमविरुद्धमिदि । एत्थ वि गुणयारो पलिदो० असंखे०भागमेत्तो ।
ॐ सत्तावीसाए संकामया असंखेज गुणा।
४६२. एत्थ वि गुणगारपमाणमावलि० असंखे०भागमेत्तं । कुदो ? अट्ठावीससंतकम्मियसम्माइट्ठि-मिच्छाइट्ठीणमिह ग्गहणादो।
ॐ पणुवीससंकामया अणंतगुणा । $ ४६३. किंचूणसधजीवरासिस्स पणुवीससंकामयत्तेण विवक्खियत्तादो ।
एवमोधाणुगमो समत्तो। ४६४. एत्तो आदेसपरूवणं देसामासियसुत्तसूचिदं वत्तइस्सामो। तं जहाआदेसेण णेरइय० सव्वत्थोवा २६ संका० । २१ संका० असंखेगुणा । २३ संका०
शंका-यदि ऐसा है तो पूर्वोक्त राशिसे यह राशि संख्यातगुणी प्राप्त हाती है, क्योंकि कालगुणकार उतना उपलब्ध होता है ?
समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि उपक्रममाण जीवोंकी प्रधानतासे पूर्वोक्त राशिसे यह राशि असंख्यातगुणी सिद्ध होती है । खुलासा इस प्रकार है-एक समयमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंका संचय संख्यात ही होता है किन्तु चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले जीव तो एक समयमें पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हुए पाये जाते हैं, इसलिए उनसे ये जीव असंख्यातगुणे होते हैं इस बातमें कोई विरोध नहीं आता है । यहाँ पर गुणकारका प्रमाण भी पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण है।
* उनसे सत्ताईस ग्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।
६४६२. यहाँ पर भी गुणकारका प्रमाण प्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाले सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीवोंका यहाँ पर ग्रहण किया है।
* उनसे पच्चीस प्रकृतियोंके संक्रामक जीव अनन्तगुणे हैं। ६४६३. क्योंकि कुछ कम सब जीवराशि पच्चीस प्रकृतियोंकी संक्रामकरूपसे विवक्षित है।
इस प्रकार ओघानुगम समाप्त हुआ। ६४६४. अब आगे देशामर्षक सूत्रसे सूचित होनेवाले आदेशका कथन करते हैं । यथाश्रादेशकी अपेक्षा नारकियोंमें २६ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं। उनसे २१ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे २३ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे
१. ता०-श्रा०प्रत्योः --इडिम्मि मिच्छाइट्ठीण इति पाठः ।
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