Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० ५८] पयडिसंकमट्ठाणाणं णाणाजीवेहि कालो
२१७ तेवीस-इगिवीससंकमट्ठाणाणं गहणं कायव्वं । तेसिं संकामया सव्वकालं होंति त्ति भणिदं होइ । संपहि सेसपदाणं कालणिद्धारणट्ठमुत्तरसुत्तावयारो
8 सेसाणं हाणाणं संकामया जहएणेण एगसमो,' उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं।
४२७. एत्थ सेसग्गहणेण वावीसादीणं संकमट्ठाणाणं गहणं कायव्वं । तेसिं जहण्णकालो एयसमयमेत्तो, उवसमसेढिम्मि विवक्खियसंकमट्ठाणसंकामयत्तेणेयसमयं परिणदाणं केत्तियाणं पि जीवाणं विदियसमए मरणपरिणामेण तदुवलंभादो । उकस्सकालो अंतोमुहुत्तं, तेसिं चेव विवक्खियसंकमट्ठाणसंकामयोवसामयाणमुवरिं' चढंताणमण्णेहि चढणोवयरणवावदेहि अणुसंधिदसंताणाणमविच्छेदकालस्स समालंबणादो। णवरि तेरस-बारस-एक्कारस-दस-चदु-तिषिण-दोण्णिसंकामयाणं खवगोवसामगे अस्सिऊण उक्कस्सकालपरूवणा कायया । एत्थतणसेसग्गहणेण एक्किस्से वि संकमट्ठागस्स गहणाइप्पसंगे तण्णिरायरणदुवारेण तत्थतणविसेसपदुप्पायणट्ठमुवरिमसुत्तमोइण्णं
® गवरि एकिस्से संकामया जहण्णुक्कस्सेणंतोमुहुत्तं ।
तेईस और इक्कीस संक्रमस्थानोंका ग्रहण करना चाहिए। उनके संक्रामक जीव सर्वदा होते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अव शेष पदोंके कालका निर्धारण करनेके लिए आगेके सूत्रका अवतार करते हैं___* शेष स्थानोंके संक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
६४२७. यहाँ पर शेष पदके ग्रहण करनेसे बाईस आदि संक्रमस्थानोंका ग्रहण करना चाहिए। उनका जघन्य काल एक समयमात्र है, क्योंकि उपशमश्रेणिमें विवक्षित संक्रमस्थानके संक्रमरूपसे एक समय र.क परिणत हुए कितने ही जीवोंका दूसरे समयमें मरण हो जानेसे उक्त काल उपलब्ध होता है । उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है, क्योंकि विवक्षित संक्रमस्थानोंके संक्रामकभावसे उपशमश्रेणिपर चढ़नेवाले उन्हीं जीवोंका उपशमणिपर चढ़नेवाले अन्य जीवोंके साथ प्राप्त हुई परम्पराका विच्छेद नहीं होनेरूप कालका अवलम्बन लिया गया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि तेरह, बारह, ग्यारह, दस, चार, तीन और दो स्थानोंके संक्रामकोंका क्षपक और उपशामक जीवोंके आश्रय से उत्कृष्ट कालका कथन करना चाहिए। यहाँ पर सूत्र में 'शेष' पदके ग्रहण करनेसे एक प्रकृतिक संक्रमस्थानका भी ग्रहण प्राप्त होने पर उसके निराकरण द्वारा उक्त स्थानसम्बन्धी विशेषताका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र अवतरित हुआ है
* किन्तु इतनी विशेषता है कि एक प्रकृतिक स्थानके संक्रामकोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
१. ता०प्रतौ एगसमयं इति पाठः । २. या प्रतौ तेसिं च इति पाठः । ३. ता प्रतौ -सामणाणमुवरि इति पाठः।
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