Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
होइ । एवं वंसयवेदोदएण चढिदस्स वि णाणाजीवसमूहस्स छम्मा संतरसमुप्पत्ती वत्तव्या । पुणो पुरिस वेदोदएण चढाविदे लद्धमंतरं होइ ति चउन्हं पि वासं सादिरेयं उकस्संतरभावेण लब्भइ । तदो एदेसिं छम्मासमेत्तंतरपरूवयं सुत्तमिदं ण जुत्तमिदि ? ण, पुरिसवेदोदयक्खवयस्स सुत्ते विवक्खियत्तादो। णवुंसय इत्थि वेदोदयक्खवयाणं किमद्रुमविवक्खा कया ? ण, बहुलमप्पसत्थवेदोदएण खवयसेढिसमारोहणसंभवाभावपदुप्पायणङ्कं सुत्ते तदविवक्खाकरणादो |
६ ४३३. संपहि उत्तसेसाणमद्भुव भाविसंकमट्ठाणाणमंतर गवेसणद्वमुवरिमसुत्तावयारो* सेसाणं णवण्हं संकमहाणाण मंतरं केवचिरं कालादो होइ ? ४३४, सुगमं ।
* जहरण एयसत्र, उक्कस्सेण संखेज्जाणि वस्सापि ।
९ ४३५. एत्थ सेसग्गहणेण २०, १९, १८, १४, ९, ८, ७, ६, ५, एदेसिं संकमणाणं संगहो कायव्वो । णवरगहणेण वि उवरिमसुते भणिस्समाणधुव भावित्तसंकमा वुदासो ददुव्वो । एदेसिं च उपसमसेढिसंबंधीणं जह० एयसमओ, उक्क०
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प्राप्त हो जाता है । इसी प्रकार जो नाना जीव नपुंसक वेद के उदयसे क्षपकश्रेणि पर चढ़ते हैं उनकी अपेक्षा भी छह माह प्रमाण अन्तर की उत्पत्ति कहनी चाहिये । फिर पुरुषवेद के उदयसे क्षपकश्रेणि पर चढ़ाने पर अन्तर प्राप्त होता है । इस प्रकार चार प्रकृतिक संक्रमस्थानका भी उत्कृष्ट अन्तर साधक एक वर्ष प्राप्त होता है, इसलिये इन दोनों स्थानोंके छह माहप्रमाण उत्कृष्ट अन्तरका कथन करनेवाला यह सूत्र युक्त नहीं है ?
समाधान — नहीं, क्योंकि सूत्र में पुरुषवेदकी क्षपणा करनेवाले नाना जीव विवक्षित हैं, इसलिए इस अपेक्षा से उक्त स्थानोंका उत्कृष्ट अन्तर छह माहप्रमाण ही प्राप्त होता है ।
शंका- यहां पर नपुंसकवेद और स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणि पर चढ़े हुए जीवों की विवक्षा क्यों की गई है ?
समाधान — नहीं, क्योंकि अधिकतर अप्रशस्त वेदके उदयसे क्षपक श्रेणिपर चढ़ना सम्भव नहीं है इस बातका कथन करनेके लिये सूत्रमें उक्त जीवोंकी अविवक्षा की गई है ।
$ ४३३. अब उक्त संक्रमस्थानोंसे जो शेष अध्रुव संक्रमस्थान बचे हैं उनके अन्तरकालका विचार करने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* शेष नौ संक्रमस्थानोंका अन्तरकाल कितना है ?
$ ४३४. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल संख्यात वर्ष है ।
$ ४३५. इस सूत्र में 'शेष' पदके ग्रहण करनेसे २०, १६, १८, १४, ६, ८, ७, ६, और ५ इन संक्रमस्थानोंका संग्रह करना चाहिये । तथा 'णव' पदके ग्रहण करनेसे अगले सूत्र में जो ध्रुव भावको प्राप्त हुए संक्रमस्थान कहे जानेवाले हैं उनका निराकरण हो जाता है ऐसा यहां जानना चाहिये । उपशमश्रेणिसम्बन्धी इन स्थानोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर
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