Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गी० ५ ] पयडिसकमट्ठाणाणं णाणाजीवेहि भंगविचओ
8 सेसेसु प्रहारससु संकमठाणेमु भजियव्वा ।
४१५. कुदो ? तेसिमद्धवभावित्तदंसणादो । एत्थ भंगपमाणमेदं–३८७४२०४८९ । एवमोघो समत्तो ।
* शेष अठारह संक्रमस्थानोंमें जीव भजनीय हैं।
६४१५. क्योंकि इन स्थानोंका अध्रुवपना देखा जाता है। यहाँ पर भंगोंका प्रमाण ३८७४२०४८६ है।
विशेषार्थ-मोहनीय कर्मके २७ प्रकृतिक आदि जो तेईस संक्रमस्थान हैं उनमें से २७, २६, २५, २३ और २१ संक्रमस्थानवाले बहुतसे जीव संसारमें सर्वदा पाये जाते हैं, अतः ये पांचों ध्रुवस्थान हैं। तथा शेष स्थानोंकी अपेक्षा यदि हुए तो कभी एक और कभी अनेक जीव होते हैं, इसलिये वे अध्रुवस्थान हैं । अब इन सब स्थानोंके ध्रुव भंगके साथ एक संयोगी आदि कुल मंगोंके प्राप्त करने पर वे सब ३८७४२०४८६ होते हैं। यथा
१ ध्रुव भंग जो २७, २६, २५, २३ और २१ संक्रमस्थानोंकी ___ अपेक्षासे प्राप्त होता है। २ बाईस संक्रमस्थानके भंग
३ ध्रुधभंग सहित २२ संक्रमस्थानके भंग ३४२ = ६ बीस संक्रमस्थानके प्रत्येक व संयोगी भंग ३४३= • ध्रुवभंग सहित २२ व २० संक्रमस्थानके सब भंग EX२ =१८ उन्नीस संक्रमस्थानके प्रत्येक व संयोगी सब भंग ६४३ = २७ ध्रुवभंग सहित २३, २० व १६ संक्रमस्थानके सब भंग २७४२ = ५४ अठारह संक्रमस्थानके प्रत्येक व संयोगी सब भंग २७४३ =८१ ध्रवभंग सहित २२, २०, १६ व १८ संक्रमस्थानके
सब भंग ८१ - २=१६२ चौदह संक्रमस्थानके प्रत्येक व संयोगी सव भंग ८१४३-२४३ ध्रुवभंग सहित २२ से १४ तकके पूर्वोक्त संक्रमस्थानोंके
सब भंग २४३ ४ २-४८६ तेरह संक्रमस्थानके प्रत्येक व संयोगी सब भंग २४३४३-७२६ ध्रुवभंग सहित २२ से १३ तकके पूर्वोक्त संक्रमस्थानों के
सबभंग ७२६४३=१४५८ बारह संक्रमस्थानके प्रत्येक व संयोगी भंग ७२६४३२१८७ ध्रुवभंग सहित पूर्वोक्त २२ से १२ संक्रमस्थान तकके
सब भंग २१८७४२-४३७४ ग्यारह संक्रमस्थानके प्रत्येक व संयोगी सब भंग २१८७४३६५६१ ध्रुवभंग सहित पूर्वोक्त २२ से ११ संक्रमस्थान तकके
सब भंग ६५६१४२-१३१२२ दस संक्रमस्थानके प्रत्येक व संयोगी सब भंग ६५६१४३-१६६८३ ध्रुवभंग सहित पूर्वोक्त २२ से १० संक्रमस्थान तकके
सब भग
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