Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० ५७-५८ ] पयडिसंकमट्ठाणाणं एवजीवेण कालो सत्तावीससंकमो होइ त्ति छव्वीससंकमजहण्णकालो एयसमयमेत्तो लब्भदे । अहवा जो मिच्छत्तपढमहिदीए दुचरिमसमयम्मि सम्मत्तमुव्वेल्लिय एगसमयछव्वीससंकामओ होऊण से काले सम्मत्तं पडिवज्जिय सत्तावीससंकामओ जादो तस्स छब्बीससंकमकालो जहण्णओ एयसमयमेत्तो लब्भइ त्ति वत्तव्यं ।
® उक्कसेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो।।
६३६१. तं कधं ? अट्ठावीससंतकम्मियमिच्छाइडिस्स सम्मत्तमुव्वेल्लियूण पुणो सम्मामिच्छत्तमुव्वेल्लेमाणस्स सव्वो चेव तदुव्वेलणकालो छव्वीससंकामयस्स उक्कस्सकालो होइ। सो च पलिदोवमासंखेजदिभागमेत्तो । णवरि सम्मामिच्छत्तुव्वेलणकालो समयाहिओ छव्वीससंकामयस्स उकस्सकालो वत्तव्यो, तदुव्वेल्लणचरिमफालिं मिच्छत्तपढमद्विदिचरिमसमए संकामिय सम्मत्तं पडिवण्णम्मि तदुवलंभादो । संपहि पणुवीससंकामयकालपरूवणट्टमुत्तरसुत्तं भणइ
* पणुवीसाए संकामए तिषिण भंगा ।
६३६२. तं जहा-अणादिओ अपज्जवसिदो अणादिओ सपज्जवसिदो सादिओ सपज्जवसिदो चेदि पगुवीसाए संकामयस्स तिण्णि भंगा। तत्थाभव्यजीवस्स पढमो भंगो। भव्यजीवस्स सम्मत्तप्पायणाए विदिओ भंगो । तस्सेव हेट्ठा परिवदिदस्स तदिओ
स्थानको प्राप्त होगया । पुनः दूसरे समयमें सम्यग्मिथ्यात्वका संक्रामक होकर सत्ताईस प्रकृतिक संक्रमस्थानको प्राप्त हुआ उसके छब्बीस प्रकृतिक संक्रमस्थानका जधन्य काल एक समय प्राप्त होता है। अथवा जो जीव मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके उपान्त्य समयमें सम्यक्त्वकी उद्वेलना करके एक समय तक छब्बीस प्रकृतिक संक्रमस्थानका स्वामी होकर उसके बाद दूसरे समयमें सम्यक्त्वको प्राप्त होकर सत्ताईस प्रकृतियोंका संक्रामक हुआ उसके छब्बीस प्रकृतिक संक्रमस्थानका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है ऐसा यहाँ कहना चाहिए।
* उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
६ ३६१. खुलासा इस प्रकार है-अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो मिथ्यादृष्टि जीव सम्यक्त्वकी उद्वेलना करके पुनः सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना कर रहा है उसके सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनामें जितना काल लगता है वह सभी काल छब्बीस प्रकृतिक संक्रामकका उत्कृष्ट काल होता है जो कि पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है । किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वके उक्त उद्वेलना कालको एक समय अधिक करके छब्बीस प्रकृतिक संक्रामकका उत्कृष्टकाल कहना चाहिये, क्योंकि जो जीव मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके अन्तिम समयमें सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वलना की अन्तिम फालिका संक्रम करके सम्यक्त्वको प्राप्त होता है उसके उक्त उत्कृष्ट काल प्राप्त होता है। अब पच्चीस प्रकृतियोंके संक्रामकके कालका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं___* पच्चीस प्रकृतिक संक्रामकके तीन भङ्ग हैं।
६३६२. यथा-अनादि-अनन्त, अनादि-साम्त और सादि-सान्त । इस प्रकार पच्चीस प्रकृतिक संक्रामक जीवकी अपेक्षा तीन भङ्ग हैं। उनमें से अभव्य जीवके पहला भङ्ग होता है। भव्य जोवके सम्यक्त्वक उत्पन्न करनेपर दूसरा भङ्ग होता है और उसी जीवके सम्यक्त्वसे च्युत होनेपर तीसरा भंग होता है । यहाँ तीसरे भंगमें जघन्य और उत्कृष्ट विकल्प सम्भव होनेसे उसका निर्णय करनेके
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