Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ असंखेज्जदिभागेण ।
$३५८. तं जहा-एगो अणादियमिच्छाइट्ठी उवसमसम्मत्तं पडिवजिय सत्तावोससंकामो होऊण मिच्छत्तं गदो पलिदोवमासंखेजभागमेत्तकालमुव्वेल्लणावावारेणच्छिय अविणट्ठसंकमपाओग्गसम्मत्तसंतकम्मेण सम्मत्तं पडिवण्णो पढमछावडिं परिभमिय तदवसाणे मिच्छत्तं गंतूण पुवं व पलिदोवमासंखेजभागमेत्तकालसम्मत्तुव्वे ल्लणावावदो तदुव्वेल्लणचरिमफालीए सह सम्मत्तमुवगओ। विदियछावहिँ परिभमणं काऊण तप्पजवसाणे मिच्छत्तं गओ । पुणो वि दीहुव्वेलणकालेण सम्मत्तमुव्वेल्लिय छब्बीससंकामओ जादो। एवं तीहि पलिदोवमासंखेज्जदिभागेहि सादिरेयवेछावट्ठिसागरोवममेत्तो सत्तावीससंकमुक्कस्सकालो लद्धो। संपहि छव्वीससंकामयजहण्णुकस्सकालपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तमोइण्णं
छव्वीससंकामो केवचिरं कालादो होइ ? ६३५९. सुगमं ।
ॐ जगणेण एगसमओ।
:३६०. तं जहा–गिस्संतकम्मियमिच्छाइट्ठिस्स पढमसम्मत्तग्गहणपढमसमयम्मि छब्बीससंकामयभावमुवगयस्स पुणो विदियसमए सम्मामिच्छ संकामेमाणस्स
काल प्रमाण है।
६३५८. खुलासा इस प्रकार है-कोई एक अनादि मिथ्यादृष्टि जीव उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त करके और सत्ताईस प्रकृतियों का संक्रामक होकर मिथ्यात्वमें गया। फिर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालतक उद्वेलनाक्रिया में लगा रहा और सम्यक्त्वसत्कर्मके संक्रमकी योग्यताका नाश होनेके पूर्व ही सम्यक्त्वको प्राप्त होगया। फिर प्रथम छयासठ सागर कालतक परिभ्रमण करके अन्तमें मिथ्यात्वमें गया और पहलेके समान पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालतक सम्यक्त्वकी उद्वेलना करता रहा । किन्तु उसकी उद्वेलनाकी अन्तिम फालिके साथ ही सम्यक्त्वको प्राप्त होगया। फिर दूसरे छयासठ सागर कालतक परिभ्रमण करके उसके अन्तमें मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। फिर सबसे बड़े उद्वेलनाकालके द्वारा सम्यक्त्वकी उद्वेलना करके छब्बीस प्रकृतियोंका संक्रामक होगया । इस प्रकार सत्ताईस प्रकृतियोंके संक्रामकका उत्कृष्ट काल पल्यके तोन असंख्यातवें भागोंसे अधिक दो छयासठ सागर प्राप्त हुआ। अब छब्बीस प्रकृतियोंके संक्रामकके जघन्य और उत्कृष्ट कालका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* छब्बीस प्रकृतिक संक्रामकका कितना काल है ? 5 ३५६. यह सूत्र सुगम है । * जघन्य काल एक समय है।
६ ३६०. खुलासा इस प्रकार है-सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्यकी सत्तासे रहित जो मिथ्यादृष्टि जीव प्रथम सम्यक्त्वको ग्रहण करके उसके प्रथम समयमें छवोस प्रकृतिक संक्रम
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