Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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१६८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ३२९. संपहि बंधहाणेसु तदणुगमं वत्तइस्सामो। तं जहा-अट्ठावीससंतकम्मियमिच्छाइट्ठिम्मि वावीसबंधट्ठाणं होऊण सत्तावीससंकमो होइ १ । तेणेव सम्मत्ते उव्वेल्लिदे छव्वीससंकमो होइ, बंधट्ठाणं पुण तं चैव २ । सम्मामिच्छत्ते उव्वेल्लिदे तेणेव बंधट्टाणेण सह पणुवीससंकमो होइ ३। अणंताणुबंधी विसंजोएदूण मिच्छत्तं गदस्स पढमावलियाए वावीसबंधेण सह तेवीससंकमो होइ ४ । एवं वावीसबंधट्ठाणम्मि चत्तारि संकमट्ठाणाणि लद्धाणि ।
३३०. सासणसम्माइट्ठिम्मि इगिवीसबंधट्ठाणं होदूण पणुवीससंकमट्ठाणमुप्पजदि १। अणंताणु विसंजोयणापुरस्सरं सासाणं गुणं पडिवण्णस्स पढमावलियाए इगिवीसबंधट्ठाणमिगिवीससंकमट्ठाणाहिट्ठियमुप्पजदि २ । एवमिगिवीसबंधट्ठाणम्मि दोण्णि चेव संकमट्ठाणाणि होति ।
३३१. सम्मामिच्छाइ ट्ठिम्मि सत्तारसबंधोहोऊण अणंताणुबंधिविसंजोयणाविसंजोयणावसेण इगिवीस-पंचवीससंकमट्ठाणाणि होति २ । अट्ठावीससंतकम्मियासंजदसम्माइद्विम्मि सत्तारसबंधेण सह सत्तावीसपयडिट्ठाणसंकमो होइ ३ । उवसमसम्मत्तग्गहणपढम समयम्मि वट्टमाणस्स तस्सेव छब्बीससंकमट्ठाणं होइ ४। अणंताणु० विसंजोयणमस्सियूर्ण
६३२९. अब वन्धस्थानों में उनका अनुगम करके बतलाते हैं। यथा - अट्ठाईस प्रकृतिक सत्कर्मवाले मिथ्या दृष्टिके बाईस प्रकृतिक बन्धस्थान होकर सत्ताईस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है १ । इसी जीवके द्वारा सम्यक्त्वकी उद्वेलना कर देने पर छब्बीसप्रकृतिक संक्रमस्थान होता है किन्तु बन्धस्थान वही रहता है २। सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना कर देने पर उसी बन्धस्थानके साथ पच्चीस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ३ । अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके मिथ्यात्वको प्राप्त हुए जीवके प्रथम आवलिमें बाईस प्रकृतिक बन्धस्थानके साथ तेईस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है४। इस प्रकार बाईस प्रकृतिक बन्धस्थानमें चार संक्रमस्थान प्राप्त हुए।
६३३०. सासादनसम्यग्दृष्टि जीके इक्कीस प्रकृतिक बन्धस्थान होकर पच्चीस प्रकृतिक संक्रमस्थान उत्पन्न होता है १। तथा अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनापूर्वक सासादनको प्राप्त हुए जीवके प्रथम आवलिमें इक्कीस प्रकृतिक बन्धस्थानसे सम्बन्ध रखनेवाला इक्कीस प्रकृतिक संक्रमस्थान उत्पन्न होता है २ । इस प्रकार इक्कीस प्रकृतिक बन्धस्थानमें दो ही संक्रमस्थान होते हैं।
६३३१. सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें सत्रह प्रकृतिक बन्धस्थान होकर इक्कीस प्रकृतिक और पच्चीस प्रकृतिक ये दो संक्रमस्थान होते हैं । इनमें से जिसने पूर्व में अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना की है उसके इक्कीस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है और जिसने अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना नहीं की है उसके पच्चीस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है २। अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाले असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें सत्रहप्रकृतिक बन्धस्थानके साथ सत्ताईस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ३ । उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण करनेके प्रथम समय में विद्यमान उसी जीवके छब्बीस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ४ । अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनाका आश्रय करके तेईस प्रकृतिक
१. ता० प्रतौ विसंजोएदूण इति पाठः ।
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