Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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१४०
सत्तास्था० संक्रमस्था०
२४ प्र०
२३ प्र०
२४ प्र०
२४ प्र०
२३ प्र०
२३ प्र०
२३ प्र०
२४ प्र०
२८ प्र०
२१ प्र०
२१ प्र०
२१ प्र०
२४ प्र०
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२३ प्र०
२३ प्र०
२२ प्र०
२२ प्र०
२२ प्र०
२२ प्र०
२१ प्र०
२१ प्र०
२१ प्र०
२१ प्र०
२१ प्र०
प्रकृतियां
चार अनन्तानुबन्धी व सम्यक्त्व के बिना
"" 33
"" "
चार अनन्तानुबन्धी मिथ्यात्व व सम्यक्त्व के बिना
""
जयधवलासंहिदे कसायपाहुडे
"1
""
अनन्तानु० ४, सम्यक्त्व व संज्वन लोभके विना
२२ प्र०
""
"
अनन्तानुबन्धी ४ व ३ दर्शनमोहके बिना
"
27
""
"
13
४ अनन्ता०, सभ्य
लोभ
क्त्व, संज्व० नपुंसक वेद
बिना २१ प्र०
प्रतिग्रहस्था ०
१५ प्र०
११ प्र०
७
१५ प्र०
१४ प्र०
१० प्र०
७ प्र०
२१ प्र०
१७ प्र०
१३ प्र०
९ प्र०
७ प्र०
प्रकृतियां |
पूर्वोक्त
पूर्वोक्त
चार संज्वलन,
पुरुषवेद सम्यक्त्व व सम्यग्मि
१८ में से अप्रत्या० ४ के कम कर
पूर्वोक्त १९ में से | जिसने मिथ्यात्व सम्यग्मध्यात्व कम कर देने पर
की क्षपणा कर दी है ऐसा अविरत सम्यग्दृष्टि मिध्यात्वका क्षपक देशविरत
पूर्वोक्त
देने पर
१४ मेंसे प्रत्याख्या मिथ्यात्वका क्षपक
४ के कम कर
प्रमत्त व अप्रमत्त
देने पर
पूर्वोक्त २१ प्र०
७ प्र०
पूर्वोक्त १७ प्र० देशविरत के बंधने
वाली १३ प्र०
चार संज्व,
नोकषाय
पूर्वोक्त
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[ बंधगो ६
स्वामी
विसंयो० देशविरत
७ प्र०
विसंयो० प्रमत्त,
अप्र०पू० संयत अनिवृत्तिकरण
उपशा०
अनिवृत्ति० उपशा●
सासादन सम्य० के एक आलि
तक
क्षायिक अविरतस० क्षायिक० देशवि०
प्रथम आदि तीन
क्षायिक सम्यग्दृष्टि अनिवृत्ति० उपशा०
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