Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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STTO 38-341
संकमट्ठाणाणं पडिग्गहट्ठाण णिसो
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९ २९०. 'एत्तो अवसेसा' पयडिट्ठाणसंकमा वीसादयो पयडिट्ठाणपडिग्गहा च छक्क- पणगादयो संजमम्हि संजमोवलक्खिएस चेव गुणट्ठाणेसु होंति णाण्णत्थ, तेसिं तत्थेव नियमदंसणादो । तत्थ वि खवगोवसमसेढीसु चेव होंति त्ति जाणावणडुं 'उवसासामागे च खवगे च' इदि भणिदं । एवं सामण्णेण परूविय संपहि एदस्सेव विसेसिऊण परूवणट्ठमिदमाह 'वीसा य संकमदुगे' । वीसाए संकमो दोसु चेव पडिग्गहट्ठा हो । काणि ताणि दोपडिग्गहट्ठाणाणि त्ति आसंकाए 'छक्के पणगे च बोद्धव्वा' त्ति भणिदं । तं कथं ? चउवीससंतकम्मिएणुवसमसेटिं चढिय णवुंसयइत्थवेदोवसमं काऊण पुरिसवेदपडिग्गहबोच्छेदे कदे सम्मत्त - सम्मामिच्छत्त - चउंसंजलणसण्णिदछप्पयाड पडि ग्गहपडिबद्धो वीसपयडिसंकमो होइ । पुणो इगिवीस संतकम्मिएणुवसमसेटिं चढिय आणुपुत्रीसंकसे कदे वीसपयडिसंकमो पंचपयडिपडिग्गहपडिबद्धो समुपजइ । तम्हा छक्के पणगे च वीसाए संकमो ति सिद्धं || ८ ||
प्रतिग्रहस्थान भी सम्मिलित है । यह प्रतिग्रहस्थान सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि इन दोनों के सम्भव है और इन दोनोंके इसमें इक्कीस प्रकृतियोंका संक्रम भी सम्भव है । यद्यपि स्थिति ऐसी है तथापि गाथामें या उसकी टीकामें सम्यग्मिध्यादृष्टि के इस संक्रम व प्रतिग्रहस्थानका निर्देश नहीं किया गया है । इसका निर्देश क्यों नहीं किया गया है इसके दो कारण हो सकते हैं। प्रथम तो यह कि सम्यक्त्व ग्रहण करनेसे उसके प्रतिपक्षी भावका भी ग्रहण हो जाता है, इसलिये यद्यपि पृथक से निर्देश नहीं किया है तथापि उसका ग्रहण हो जाता है और दूसरा यह कि गौण समझकर उसे छोड़ दिया है । तथापि गाथामें आया हुआ 'सम्मत्ते' पद देशामर्षक होने से उसका ग्रहण हो जाता है
$ २९०. अब 'एत्तो अवसेसा०' इस आठवीं गाथाका अर्थ लिखते हैं- ये पूर्वमें जितने भी संक्रमस्थान और प्रतिग्रहस्थान कह आये हैं उनके सिवा वीस आदिक जितने संक्रमस्थान हैं और छह, पाँच आदिक जितने प्रतिग्रहस्थान हैं वे सब संयमसे युक्त गुणस्थानोंमें ही होते हैं । अन्यत्र नहीं होते हैं, क्योंकि उनके वहीं होनेका नियम देखा जाता है । उसमें भी ये क्षपकश्रेणि और उपशमश्रेणिमें ही होते हैं, इसलिये इस बातके जतानेके लिये गाथामें 'उवसामगे च खवगे च' पाठ कहा है। इस प्रकार सामान्यरूपसे कथन करके अब इसी बातका विशेषरूपसे कथन करनेके लिये गाथा में 'वीसा य संकमदुगे' पाठ कहा है। इसका यह आशय है कि बीस प्रकृतिक संक्रम दो प्रतिग्रहस्थानों में होता है। वे दो प्रतिप्रहस्थान कौनसे हैं ऐसी आशंका होने पर 'छक्के पणगे च बोद्धव्वा' यह पद कहा है । खुलासा इस प्रकार है - जो चौबीस प्रकृतियों की सत्तावाला जीव उपशमश्रेणि पर चढ़कर नपुंसकवेद और स्त्रीवेदका उपशम करके पुरुषवेदकी प्रतिग्रहव्युच्छित्ति कर देता है उसके सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और चार संवलन इन छह प्रकृतियोंके प्रतिग्रहरूप स्थान से सम्बन्ध रखनेवाला बीस प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है । तथा इक्कीस प्रकृतियों की सत्तावाला जो जीव उपशमश्रेणि पर चढ़कर श्रानुपूर्वी संक्रमका प्रारम्भ कर देता है उसके पाँच प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान से सम्बन्ध रखनेवाला बीस प्रकृतिक संक्रमस्थान उत्पन्न होता है । अतएव छह और पाँच प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान में बीस प्रकृतियों का संक्रम होता है यह बात सिद्ध हुई ||८||
१. वा. प्रतौ सम्मत्तसम्माविच - इति पाठः ।
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