Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २८] पयडिट्ठाणपडिग्गहापडिग्गहपरूवणा
१२१ एकवीस-तेरस-बारसेकारसण्हं दस-चउक्काणं तिण्हं दोण्हमेकिस्से च संकमट्ठाणस्स संकंतिदसणादो। एवमेदीए विदियगाहाए पढमगाहापरूविदसंकमट्ठाणाणमाहारभूदाणि पडिग्गहट्ठाणाणि सामण्णेण णिद्दिवाणि । स्थानोंका, चार प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमें दस और चार प्रकृतिक संक्रमस्थानोंका, तीन प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमें तीन प्रकृतिक संक्रमस्थानका, दो प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमें दो प्रकृतिकसंक्रमस्थानका
और एक प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमें एक प्रकृतिक संक्रमस्थानका संक्रम देखा जाता है। इसप्रकार इस दूसरी गाथाद्वारा प्रथम गाथामें कहे गये संक्रमस्थानोंके आधारभूत प्रतिग्रहस्थानोंका सामान्यरूपसे निर्देश किया है।
विशेषार्थ-अब यहां गुणस्थानके क्रमसे प्रतिग्रहस्थान, संक्रमस्थान तथा उनकी प्रकृतियों का कोष्ठकद्वारा निर्देश करते हैं
गुणस्थान
प्रतिग्रह स्थान
प्रकृतियाँ
संक्रमस्थान
प्रकृतियां
| २२ प्र. | मिथ्यात्व, सोलह कषाय, २७ प्र० | मिथ्यात्वके बिना
तीन वेदोंमेंसे कोई एक, मिथ्यात्व दो युगलोंमेंसे एक
२६ प्र. | मिथ्यात्व और सम्ययुगल, भय और जुगुप्सा
क्त्वके बिना २१ प्र० | मिथ्यात्वके बिना पूर्वोक्त | २५ प्र. | तीन दर्शनमोहके बिना
२१ प्र. | मिथ्यात्वके बिना पूर्वोक्त | २५ प्र० | तीन दर्शनमोहके बिना सासादन किन्तु नपुसकवेदका बन्ध न होनेसे दो वेदों
२१ प्र० तीन दर्शनमोह व अनन्तामेंसे कोई एक
नुबन्धी चारके बिना मिश्र | १७ प्र. पूर्वोक्त २१ मेंसे चार २५ प्र० तीन दर्शनमोहके बिना अनन्तानुबन्धीके बिना
२१ प्र० किन्तु वेदमें मात्र
तीन दर्शनमोह व चार पुरुषवेद
अनन्तानुबन्धीके बिना १९ प्र० पूर्वोक्त १७ में सम्यक्त्व २७ सम्यक्त्वके बिना व सम्यग्मिथ्यात्व
सम्यक्त्व व सम्यमिला देनेपर
ग्मिथ्यात्वके बिना अविरत
अनन्तानुवन्धी ४ व सम्य०
सम्यक्त्वके बिना । १८प्र० | सम्यग्मिथ्यात्वके बिना
पूर्वोक्त ५ व मिथ्यात्व
के बिना
२६
१७प्र.]
सम्यक्त्वके विना । २१ । | १२ कषाय हनोकषाय
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