Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ १५७. अपच्चक्खाणमाणं संकामेंतो मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-अणंताणु० चउक्काणमपञ्चक्खाणकोहभंगो। सत्तकसायाणं णियमा संकामओ। चत्तारिकसायणवणोकसायाणं सिया संकाम० सिया असंकाम० । एवं पञ्चक्खाणमाणं ।
१५८. अपचक्खाणमायं' संकामेंतो मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-अणंताणु० चउकाणमपञ्चक्खाणकोहभंगो। चत्तारि कसायाणं णियमा संकामओ । सत्तक०-. णवणोक० सिया संकाम० सिया असंकाम० । एवं पञ्चक्खाणमायं ।।
१५९. अपञ्चक्खाणलोभं संकामेंतो दंसणतिय-अणंताणुबंधिचउक्काणमपञ्च
आनुपूर्वी संक्रम चालू हो जानेसे लोभसंज्वलनका संक्रम नहीं होता और अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका उपशम होनेके पूर्व ही नौ नोकषायोंका उपशम हो जाता है ऐसा नियम है, अतः अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका संक्रम चालू रहते हुए भी उक्त दस प्रकृतियोंका संक्रम होना रुक जाता है। इसीसे यहां पर जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका संक्रामक है वह उक्त प्रकृतियोंका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है यह कहा है। किन्तु इसके शेप अप्रत्याख्यानावरण मान आदि दस कषायोंका संक्रम अवश्य होता रहता है, क्योंकि अप्रत्याख्यानावरण क्रोधसे पहले न तो इन दस प्रकृतियोंका अभाव ही होता है और न उपशम ही होता है। प्रत्याख्यानावरण क्रोधकी स्थिति अप्रत्याख्यानावरण क्रोधसे मिलती जुलती है अतः इन दोनोंका कथन एक समान कहा है।
१५७. जो अप्रत्याख्यानावरण मानका संक्रामक है उसके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग अप्रत्याख्यानावरण क्रोधके समान है । तथापि यह सात कषायोंका नियमसे संक्रामक है। तथा चार कषाय और नौ नोकषायोंका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण मानका संक्रम करनेवाले जीवके विषयमें जानना चाहिये ।
विशेषार्थ-अप्रत्याख्यानावरण मानके पहले अप्रत्याख्यानावरण माया और लोभ, प्रत्याख्यानावरण मान, माया और लोभ तथा संज्वलन मान और माया इन सात प्रकृतियोंका उपशम नहीं होता, अतः इन प्रकृतियोंका यह जीव नियमसे संक्रामक है यह कहा है । शेप कथन सुगम है।
६१५८. जो अप्रत्याख्यानावरण मायाका संक्रामक है उसके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग अप्रत्याख्यानावरण क्रोधके समान है। तथापि यह चार कषायोंका नियमसे संक्रामक है। तथा सात कषाय और नौ नोकपायोंका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण मायाका संक्रम करनेवाले जीवके विषयमें जानना चाहिये।
विशेषार्थ-अप्रत्याख्यानावरण मायासे पहले अप्रत्याख्यानावरण लोभ, प्रत्याख्यानावरण माया और लोभ तथा संज्वलन माया इन चार प्रकृतियोंका उपशम नहीं होता, अतः इन प्रकृतियोंका यह जीव नियमसे संक्रामक है यह कहा है । शेष कथन सुगम है।
१५६. जो जीव अप्रत्याख्यानावरण लोभका संक्रम करता है उसके तीन दर्शनमोहनीय
१. ता०प्रतौ -क्खाणमायं । अपच्चक्खाणमाणं इति पाठः।
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