Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
अता ०४ सिया अस्थि०, जइ अस्थि सिया संकामओ० । बारसक० णवणोक णियमा संका० । अपचक्खाणकोधं संकामेंतो मिच्छ० सम्म० सम्मामि० अणंताणु०४ सिया अस्थि सिया णत्थि । जइ अस्थि सिया संका ० सिया असंका ० | एकारसक ०णवणोक० णियमा संकामओ । एवमेक्कारसक० णवणोकसायाणं । एवं पढमाए तिरिक्खपंचिदियतिरिक्खदुर्ग- देवगदि- देवा सोहम्मादि णवगेवजा त्ति । विदियादि सत्तमा ति एवं चैव । णवरि अपचक्खाणकोधं संकामेंतो मिच्छत्तस्स सिया संकाम० सिया असं काम ० । एवं जोणिणी-भवणवासिय-वाणवेंतर - जोइसिए ।
१६८. पंचिदियतिरिक्खअपज ० मणुसअपञ्ज० सम्मत्तं संकामेंतो सम्मामि०सोलसक०-णवणोकसायाणं णियमा संकामओ । सम्मामिच्छत्तं संकामेंतो सम्मत्तं सिया अथ । जदि अत्थि, सिया संकाम० । सोलसक० - णवणोक० णियमा संकामओ । अनंताणु० कोधं संकामेंतो सम्मत्त सम्मामिच्छत्तं सिया अस्थि । जदि अस्थि, सिया संकाओ । पण्णारसक० - णवणोकसायाणं णियमा संकामओ । एवं पण्णा रसक०raणोकसायाणं ।
अनन्तानुबन्धीचतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो इनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् संक्रामक है । बारह कषाय और नौ नोकषायों का नियमसे संक्रामक है । जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका संक्रामक है उसके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं । यदि हैं तो इनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । ग्यारह कषाय और नौ नोकषायों का नियमसे संक्रामक है । इसीप्रकार ग्यारह कषाय और नौ नोकपायोंका आश्रय लेकर कथन करना चाहिये । इसीप्रकार प्रथम पृथिवी, तिर्यञ्च, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चद्विक, सामान्य देव और सौधर्म से लेकर नौ ग्रैवयक तक के देवोंमें जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका संक्रामक है वह मिथ्यात्वका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । इसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिनी, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके जानना चाहिये ।
$ १६८. पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्त जीवोंमें जो सम्यक्त्वका संक्रामक है वह सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका नियमसे संक्रामक है । जो सम्यग्मिध्यात्वका संक्रामक है उसके सम्यक्त्व कदाचित् है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो उसका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है | सोलह कषाय और नौ नोकपायोंका नियमसे संक्रामक है । अनन्तानुबन्धी क्रोधका जो संक्रामक है उसके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व कदाचित् हैं और कदाचित नहीं हैं। यदि हैं तो इनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । पन्द्रह कषाय और नौ नोकषायका नियमसे संक्रामक है । इसी प्रकार पन्द्रह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामकका आश्रय लेकर सन्निकर्ष कहना चाहिये ।
विशेषार्थ — उक्त दो मार्गणाओं में छब्बीस प्रकृतियाँ तो नियमसे हैं और सम्यग्मिथ्यात्वा सत्त्व पाया भी जाता है और नहीं भी पाया जाता है ।
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१. ता० प्रतौ पंचिंदियदुग इति पाठः ।
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किन्तु सम्यक्त्व उसमें भी जिसके
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