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________________ ७२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ अता ०४ सिया अस्थि०, जइ अस्थि सिया संकामओ० । बारसक० णवणोक णियमा संका० । अपचक्खाणकोधं संकामेंतो मिच्छ० सम्म० सम्मामि० अणंताणु०४ सिया अस्थि सिया णत्थि । जइ अस्थि सिया संका ० सिया असंका ० | एकारसक ०णवणोक० णियमा संकामओ । एवमेक्कारसक० णवणोकसायाणं । एवं पढमाए तिरिक्खपंचिदियतिरिक्खदुर्ग- देवगदि- देवा सोहम्मादि णवगेवजा त्ति । विदियादि सत्तमा ति एवं चैव । णवरि अपचक्खाणकोधं संकामेंतो मिच्छत्तस्स सिया संकाम० सिया असं काम ० । एवं जोणिणी-भवणवासिय-वाणवेंतर - जोइसिए । १६८. पंचिदियतिरिक्खअपज ० मणुसअपञ्ज० सम्मत्तं संकामेंतो सम्मामि०सोलसक०-णवणोकसायाणं णियमा संकामओ । सम्मामिच्छत्तं संकामेंतो सम्मत्तं सिया अथ । जदि अत्थि, सिया संकाम० । सोलसक० - णवणोक० णियमा संकामओ । अनंताणु० कोधं संकामेंतो सम्मत्त सम्मामिच्छत्तं सिया अस्थि । जदि अस्थि, सिया संकाओ । पण्णारसक० - णवणोकसायाणं णियमा संकामओ । एवं पण्णा रसक०raणोकसायाणं । अनन्तानुबन्धीचतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो इनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् संक्रामक है । बारह कषाय और नौ नोकषायों का नियमसे संक्रामक है । जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका संक्रामक है उसके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं । यदि हैं तो इनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । ग्यारह कषाय और नौ नोकषायों का नियमसे संक्रामक है । इसीप्रकार ग्यारह कषाय और नौ नोकपायोंका आश्रय लेकर कथन करना चाहिये । इसीप्रकार प्रथम पृथिवी, तिर्यञ्च, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चद्विक, सामान्य देव और सौधर्म से लेकर नौ ग्रैवयक तक के देवोंमें जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका संक्रामक है वह मिथ्यात्वका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । इसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिनी, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके जानना चाहिये । $ १६८. पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्त जीवोंमें जो सम्यक्त्वका संक्रामक है वह सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका नियमसे संक्रामक है । जो सम्यग्मिध्यात्वका संक्रामक है उसके सम्यक्त्व कदाचित् है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो उसका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है | सोलह कषाय और नौ नोकपायोंका नियमसे संक्रामक है । अनन्तानुबन्धी क्रोधका जो संक्रामक है उसके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व कदाचित् हैं और कदाचित नहीं हैं। यदि हैं तो इनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । पन्द्रह कषाय और नौ नोकषायका नियमसे संक्रामक है । इसी प्रकार पन्द्रह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामकका आश्रय लेकर सन्निकर्ष कहना चाहिये । विशेषार्थ — उक्त दो मार्गणाओं में छब्बीस प्रकृतियाँ तो नियमसे हैं और सम्यग्मिथ्यात्वा सत्त्व पाया भी जाता है और नहीं भी पाया जाता है । । O १. ता० प्रतौ पंचिंदियदुग इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only किन्तु सम्यक्त्व उसमें भी जिसके www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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