Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा• २६ ]
अप्पाबहुअं * एवंसयवेदस्स संकामया विसेसाहिया ।
१७८. कुदो ? अंतरकरणे कदे लोहसंजलणस्स संकमाभावे वि णवंसयवेदस्स तत्थ अंतोमुहुत्तकालं संकमपाओग्गत्तदंसणादो । केत्तियमेत्तो विसेसो ? बारससंकामयमेत्तो।
8 इत्थिवेदस्स संकामया विसेसाहिया ।
६ १७९. कुदो ? णवंसयवेदे खीणे वि इत्थिवेदस्स अंतोमुहुत्तकालं संकमसंभवदंसणादो । के० मेत्तो विसेसो ? एकारससंकामयजीवमेत्तो ।
8 छएणोकसायाणं संकामया विसेसाहिया। $ १८०. के मेत्तेण ? दससंकामयजीवमेत्तेण । ॐ पुरिसवेदस्स संकामया विसेसाहिया ।
१८१. छसु कम्मसेसु खीणेसु उवरिदुसमऊणं-दोआवलियमेत्तकालमेदस्स संकमसंभवेण तत्थ संचिदचदुसंकामयमेत्तेण विसेसाहियत्तमेत्थ गहेयव्वं ।
कोहसंजलणस्स संकामया विसेसाहिया। * नपुंसकवेदके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं ।
१७८. क्योंकि अन्तरकरण करनेके बाद यद्यपि लोभ संज्वलनका संक्रम नहीं होता है तथापि वहाँ अन्तर्मुहूर्त कालतक नपुसकवेदके संक्रमकी योग्यता देखी जाती है।
शंका-विशेषका प्रमाण कितना है। समाधान—बारह प्रकृतियोंके संक्रामकोंका जितना प्रमाण है उतना है। * स्त्रीवेदके संक्रामक जोव विशेष अधिक हैं।
६ १७६. क्योंकि नपुसकवेदका क्षय हो जाने पर भी अन्तर्मुहूर्त काल तक स्त्रीवेदका संक्रम देखा जाता है।
शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-ग्यारह प्रकृतियोंके संक्रामक जीवोंका जितना प्रमाण है उतना है । * छह नोकषायोंके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं। ६१८०. शंका-कितने अधिक हैं ? समाधान-दस प्रकृतियोंके संक्रामकोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं। * पुरुषवेदके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं।
$ १८१. छह नोकपायोंका क्षय हो जानेपर दो समयकम दो श्रावलि काल तक पुरुषवेदका संक्रम सम्भव होनेसे उस कालके भीतर चार प्रकृतियोंके संक्रामकोंका जितना प्रमाण प्राप्त हो उतना यहाँ विशेष अधिक लेना चाहिये ।
* क्रोधसंज्वलनके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं । १. ता०-श्रा०प्रत्योः उवरिमसमऊण- इति पाठः ।
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