Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ संबंधो । एत्थ सेसकसाएसु अणुवसंतेसु त्ति वयणमट्टकसाय-दोदंसणमोहपयडीणं गहणटुं।
ॐ णवण्हं एक्कावीसदिकम्मंसियस्स दुविहे कोहे उवसंते कोहसंजलणे अणुवसंते।
२५९. इगिवीससंतकम्मियस्स एक्कावीसपयडिसंकमादो लोभाणुपुची संकमं काऊण कमेण णवणोकसाए उवसामिय एकारससंकामयभावेणावट्टिदस्स पुणो दुविहे कोहे उवसंते पयदसंकमट्ठाणमुप्पञ्जइ, कोहसंजलणेण सह तिविहमाण-माया-दुविहलोभपयडीणं संकमोवलंभादो। ओदरमाणसंबंधेण वि एत्थ पयदसंकमट्ठाणसंभवो वत्तव्वो, विरोहाभावादो । एत्थ पयारंतरसंभवासंकाणिरायरणमुत्तरसुत्तमाह
* चउवीसदिकम्मंसियस्स खवगस्स च णत्थि ।
अणुवसंतेसु' यह वचन दिया है सो यह आठ कषाय और दो दर्शनमोहनीय इन दस प्रकृतियों के ग्रहण करनेके लिये दिया है।
विशेषार्थ--यहाँ दस प्रकृतिक संक्रमस्थान दो प्रकारसे बतलाया है-प्रथम क्षपकश्रेणिकी अपेक्षा और दूसरा उपशमश्रेणिकी अपेक्षा । क्षपकश्रेणिकी अपेक्षा स्त्रीवेदका क्षय करके छह नोकषायोंका क्षय करते समय यह स्थान प्राप्त होता है। इस स्थानमें चार संज्वलन और सात नोकषायोंकी सत्ता पाई जाती है किन्तु संज्वलन लोभके बिना शेष दसका संक्रम होता है। उपशमश्रेणिकी अपेक्षा चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले जीवके दूसरा संक्रमस्थान पाया जाता है। यह स्थान जब क्रोधसंज्वलनका उपशम करनेके बाद दो मानोंका उपशम करनेका प्रारम्भ करता है तव प्राप्त होता है । इसके प्रत्याख्यानावरण मान, माया और लोभ ये तीन; अप्रत्याख्यानावरण मान, माया और लोभ ये तीन; संज्वलन मान और माया ये दो तथा दर्शनमोहनीयकी दो इन दस प्रकृतियोंका संक्रम पाया जाता है।
___* इक्कीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले जीवके दो प्रकारके क्रोधका उपशम होकर क्रोधसंज्वलनके अनुपशान्त रहते हुए नौ प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ।
६२५६. जो इक्कीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जीव इक्कीस प्रकृतियोंके संक्रमके बाद लोभमें आनुपूर्वी संक्रमको प्राप्त करके और क्रमसे नौ नोकषायोंका उपशम करके ग्यारह प्रकृतिक संक्रमस्थानको प्राप्त होकर स्थित है उसके दो प्रकारके क्रोधका उपशम होने पर प्रकृत संक्रमस्थान उत्पन्न होता है, क्योंकि उसके क्रोधसंज्वलनके साथ तीन प्रकारके मान, तीन प्रकारकी माया और दो प्रकारके लोभ इन नौ प्रकृतियोंका संक्रम उपलब्ध होता है। उपशमश्रेणिसे उतरनेवाले के सम्बन्धसे भी यहाँ पर प्रकृत संक्रमस्थानका कथन करना चाहिये, क्योंकि इसमें कोई विरोध नहीं आता। यहां पर यह नौ प्रकृतिक संक्रमस्थान प्रकारान्तरसे भी सम्भव है क्या इस आशंकाके निवारण करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* किन्तु चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले उपशामक जीवके और क्षपक जीवके यह स्थान नहीं होता।
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