Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ६ १८२. के० मेत्तेण ? अंतोमुहुत्तसंचिदतिविहसंकामयमेत्तेण । * माणसंजलणस्स संकामया विसेसाहिया । $ १८३. विसेसपमाणमेत्थ दुविहसंकामयमेत्तं ।
ॐ मायासंजलणस्स संकामया विसेसाहिया । $ १८४. एक्किस्से संकामयजीवमेत्तेण ।
एवमोघो समत्तो । १८५. संपहि आदेसेण णिरयगईए पयदप्पाबहुअपरूवणट्ठमुरिमो पबंधो-- ®णिरयगदीए सव्वत्थोवा सम्मत्तसंकामया ? । ६ १८६. कुदो ? सम्मत्तमुव्वेल्लमाणमिच्छाइद्विरासिस्स गहणादो ।
मिच्छत्तस्स संकामया असंखेजगुणा । ६ १८७. कुदो ? णेरइयवेदयसम्माइट्ठीणमुवसमसम्माइट्ठिसहिदाणमिह ग्गहणादो । * सम्मामिच्छत्तस्स संकामया विसेसाहिया । $ १८८. के०मेत्तेण ? सादिरेयसम्मत्तसंकामयमेत्तेण । ६ १८२. शंका-कितने अधिक हैं ?
समाधान—अन्तर्मुहूर्तमें तीन प्रकृतियों के संक्रामकोंका जितना प्रमाण संचित हो उतने अधिक हैं।
* मानसंज्वलनके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं।
६ १८३. क्योंकि दो प्रकृतियोंके संक्रामकोंका जितना प्रमाण है उतना यहाँ विशेष अधिकका प्रमाण जानना चाहिये।
* मायासंज्वलनके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं। ६१८४. एक प्रकृतिके संक्रामक जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं।
इस प्रकार ओघप्ररूपणा समाप्त हुई। ६ १८५. अब आदेशसे नरकगतिमें प्रकृत अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिये आगेके प्रबन्धका निर्देश करते हैं
* नरकगतिमें सम्यक्त्वके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं।
..६१८६. क्योंकि यहां सम्यक्त्वकी उद्वलना करनेवाले मिथ्यादृष्टि जीवोंकी राशिका ग्रहण किया है।
* मिथ्यात्वके संक्रामक जीव असंख्यातगुगे हैं। ....१८७. क्योंकि यहाँ उपशमसम्यग्दृष्टियोंके साथ वेदकसम्यग्दृष्टि नारकियोंका ग्रहण किया है।
* सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं। 5 १८८. शंका-कितने अधिक हैं ? समाधान--सम्यक्त्वके संक्रामक जीवमात्र अधिक हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org