Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २७ ]
ट्ठाणसमुक्त्तिणा उवसंतेसु जाव छण्णोकसाया अणुवसंता ताव पयदसंकमट्ठाणमेकारसकसाय-सत्तणोकसायपडिबद्धमुप्पजइ, पुच्चुत्तसंकमपयडीसु इत्थिवेदस्स बहिब्भावादो । एवमिगिवीस-चउवीससंतकम्मिए अवलंविय उवसमसेढीपाओग्गाणि संकमट्ठाणाणि वीसादीणि परूविय संपहि सत्तारसादीणं तिण्हमसंकमपाओग्गट्ठाणाणमसंभवे कारणणिदेसं कुणमाणो उवरिमं पबंधमाह
* सत्तारसण्हं केण कारणेण पत्थि संकमो ? ... २४२. सत्तारसण्हं पयडीणं संकमपाओग्गभावेण संभवो केण कारणेण णत्थि त्ति पुच्छिदं होइ ।
खवगो एक्कावीसादो एकपहारेण अह कसाए अवणेदि ।
२४३. खवगो ताव एकवीससंतकम्मट्ठाणादो एकवारेणेव अट्ठ कसाए अवणेइ । एवमवणिदे पयदट्ठाणुप्पत्ती तत्थ णत्थि त्ति भणिदं होइ । संपहि एदस्सेव फुडीकरट्ठमुत्तरसुत्तमाह ।
* तदो अट्टकसाएमु अवणिदेसु तेरसण्हं संकमो होइ ।
$ २४४. जेण कारणेण अट्ठकसाएसु जुगवमवणिदेसु तेरससंकमट्ठाणमुप्पजइ तेण खवगमस्सियूण सत्तारसपयडिट्ठाणस्स णत्थि संभवो त्ति सुत्तत्थसंगहो । और स्त्रीवेदका उपशम होकर जबतक छह नोकषायोंका उपशम नहीं होता तबतक ग्यारह कपाय और सात नोकषायोंसे सम्बन्ध रखनेवाला प्रकृत संक्रमस्थान उत्पन्न होता है, क्योंकि यहां पर पूर्वोक्त उनीस संक्रम प्रकृतियोंमेंसे स्त्रीवेद प्रकृति और कम हो गई है। आशय यह है कि चढ़ते समय पीछे जो उन्नीस प्रकृतिकसंक्रमस्थान बतला आये हैं उसमेंसे स्त्रीवेदके कम कर देने पर अठारह प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है। इस प्रकार इक्कीस और चौबीस प्रकृतिक सत्त्वस्थानोंका आलम्बन लेकर उपशमश्रेणिके योग्य बीस आदि संक्रमस्थानोंका कथन करके अब जो सत्रह आदि तीन संक्रमके अयोग्य स्थान बतलाये हैं उनका संक्रम क्यों सम्भव नहीं है इसके कारणका निर्देश करनेकी इच्छासे आगेके प्रबन्धका निर्देश करते हैं
* सत्रह प्रकृतियोंका किस कारणसे संक्रम नहीं होता । ६२४२. सत्रह प्रकृतियाँ संक्रमके योग्य क्यों नहीं हैं यह इस सूत्रके द्वारा पूछा गया है।
* क्योंकि क्षपक जीव इक्कीस प्रकृतियोंमेंसे एक प्रहारके द्वारा आठ कषायोंका अभाव करता है।
$ २४३. क्षषक तो इक्कीस प्रकृतिक सत्त्वस्थानसे एक बारमें ही आठ कषायोंको निकाल फेंकता है और इस प्रकार निकाल देने पर वहां प्रकृत स्थानकी उत्पत्ति नहीं होती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब इसी बातको स्पष्ट करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* इस लिये आठ कषायोंका अभाव कर देने पर तेरहप्रकृतिक संक्रमस्थान होता है।
२४४. यतः आठ कषायोंका एक साथ अभाव कर देने पर तेरह प्रकृतिक संक्रमस्थान उत्पन्न होता है अतः क्षपक जीवकी अपेक्षा सत्रह प्रकृतिकस्थान सम्भव नहीं है यह इस सूत्रका
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