Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ संपहि तिरिक्खगदीए अप्पाबहुअपरूवणट्ठमाह ।
ॐ तिरिक्खगईए सव्वत्थोवा सम्मत्तस्स संकामया । $ १९२. सुगमं ।
8 मिच्छत्तस्स संकामया असंखेज्जगुणा । $ १९३. एत्थ वि कारणमोघसिद्ध।
सम्मामिच्छत्तस्स संकामया विसेसाहिया । $ १९४. केत्तियमेत्तण ? सादिरेयसम्मत्तसंकामयमेत्तण ।
* अणंताणुबंधीणं संकामया अणंतगुणा । $ १९५. कुदो ? किंचूणतिरिक्खरासिस्स गहणादो ।
8 सेसाणं कम्माणं संकामया तुल्ला विसेसाहिया । $ १९६. तिरिक्खरासिस्स सव्वस्स चेव गहणादो।
8 पंचिंदियतिरिक्खतिए णारयभंगो।
$ १९७, पंचिंदियतिरिक्ख०-मणुसअपञ्जत्तएसु सव्वत्थोवा सम्मत्त संकामया। सम्मामिच्छत्तसंकामया विसेसाहिया । सोलसक०-णवणोक० संका० असंखेगुणा। सुत्ते अवुत्तमेदं कधं उच्चदे ? ण, सुत्तस्स सूचणामेत्ते वावारादो । अल्पवहुत्वका कथन करनेके लिये आगेके सूत्र कहते हैं
* तियं च गतिमें सम्यक्त्वके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं । ६ १६२. यह सूत्र सुगम है। * मिथ्यात्वके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं।
$ १६३. असंख्यातगुणेका जो कारण ओघ प्ररूपणाके समय कहा है वही यहाँ भी जानना चाहिये।
* सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं। $ १६४. शंका-कितने अधिक हैं ? समाधान-सम्यक्त्वके संक्रामक जीवमात्र अधिक हैं। * अनन्तानुबन्धियोंके संक्रामक जीव अनन्तागुणे हैं। ६ १६५. क्योंकि यहां कुछकम तिर्यच राशिका ग्रहण किया है।
* शेष कर्मोंके संक्रामक जीव परस्परमें तुल्य हैं तथापि अनन्तानुबन्धियोंके संक्रामकोंसे विशेष अधिक हैं।
$ १९६. क्योंकि यहां पूरी तिर्य चराशिका ग्रहण किया है। * पंचेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें अल्पबहुत्व नारकियोंके समान है।
६ १६७. पंचेन्द्रियतिर्यंच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्त जीवोंमें सम्यक्त्वके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं। सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं।
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