Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २६ ]
अप्पाबहुअं * अणंताणुबंधीणं संकामया असंखेजगुणा ।
$ १८९. कुदो ? इगिवीस-चउवीससंतकम्मिए मोत्त ण सेससव्वणेरइयरासिम्स गहणादो।
8 सेसाणं कम्माणं संकामया तुल्ला विसेसाहिया ।
$ १९०. इगिवीस-चउवीससंतकम्मियाणं पि एत्थ पवेसदसणादो । एवं णिरयोघो परूविदो । एवं सत्तसु पुढवीसु वत्तव्वं ।
8 एवं देवगदीए।।
$ १९१. एदस्स विवरणे कीरमाणे समणंतरपरूविदो सव्वो चेव अप्पाबहुआलावो वत्तव्यो, विसेसाभावादो । भवणादि जाव सहस्सारे त्ति एवं चेव वत्तव्वं । आणदादि जाव णवगेवजा ति सव्वत्थोवा सम्म० संकाम० । अणंताणु०४ संकाम० असंखे० गुणा । मिच्छ० संकाम० विसेसा० । सम्मामि० संकाम० विसेसा० । बारसक०णवणोक० संकाम० विसेसा० । अणुद्दिसादि सव्वट्ठा ति सव्वत्थोवा अणंताणु०४ संकाम० । मिच्छ०-सम्मामि० संकाम० विसेसा० । बारसक०-णवणोक० संकाम० विसे । जेणेयं सुत्त देसामासियं तेणेसो सब्यो वि अत्थो एत्थ णिलीणो त्ति दट्ठव्यो ।
* अनन्तानुबन्धियोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।
$ १८६. क्योंकि इक्कीस और चौबीस प्रकृतिक सत्त्वस्थानवाले जीवोंके सिवा शेष सब नारकराशिका यहां ग्रहण किया गया है ।
* शेष कर्मोंके संक्रामक जीव परस्पर बराबर हैं किन्तु अनन्तानुबन्धियोंके संक्रामकोंसे विशेष अधिक हैं।
१०. क्योंकि इनमें इक्कीस और चौबीस प्रकृतिक सत्त्वस्थानवाले जीवोंका भी प्रवेश देखा जाता है। इस प्रकार सामान्यसे नारकियोंमें सम्यक्त्व आदि प्रकृतियोंके संक्रामकोंका अल्पबहुत्व कहा । इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें अल्पबहुत्व कहना चाहिये ।
* इसी प्रकार देवगतिमें अल्पबहुत्व जानना चाहिये ।
१६१. इस सूत्रका व्याख्यान करने पर इससे पूर्वके अल्पबहुत्वालापका पूराका पूरा कथन यहाँ पर भी करना चाहिये, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है । भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतक इसी प्रकार कथन करना चाहिये । आन तसे लेकर नौ ग्रैवेयकतकके देवोंमें सम्यक्त्व के संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अनन्तानुबन्धीचतुष्कके संक्रामक जीव असंख्यात गुणे हैं। इनसे मिथ्यात्वके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं। इनसे बारह कपाय और नौ नोकषायोंके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें अनन्तानुबन्धीचतुष्कके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं। इनसे बारह कषाय
और नौ नोकषायोंके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं। यतः ‘एवं देवगदीए' यह सूत्र देशामर्षक है अतः यह पूराका पूरा अर्थ इस सूत्रमें गभित है ऐसा जानना चाहिये । अब तिर्यंचगतिमें
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