Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २६ ]
सण्णियासो
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$ १६९. मणुसतिए ओघं । णवरि मणुसिणीसु पुरिसवेदं संकामेंतो छण्णोकसायाणं णियमा संकामओ । अणुद्दिस० जाव सव्वट्ठा त्तिमिच्छत्तं संकामेंतो सम्मामि०बारसक० - णवणोक० णियमा संकामओ । अणंताणु ० चउक्कं सिया अस्थि० । जदि अस्थि, सिया संकामओ ० | एव सम्मामिच्छत्तस्स । अणंताणु० कोधं संकामेंतो मिच्छ० -सम्मामि० पण्णारसक० - णवणोक० णियमा संकामओ । एव तिन्हं कसायाणं । अपचक्खाणकोहं संकातो मिच्छ० - सम्मामि० सिया अस्थि० । जदि अत्थि, णियमा संकामओ । अनंता ०४ सिया अस्थि० । जइ अत्थि, सिया संकामओ० । एक्कारसक० - णवणोकसायाणं णियमा संकामओ । एवमेकारसक - णवणोकसायाणं । एवं जाव० ।
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$ १७०. भावो सव्वत्थ ओदइओ भावो ।
पाहु |
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$ १७१. अहियार संभालणसुत्तमेदं । सुगमं । * सव्वत्थोवा सम्मत्तस्स संकामया ।
सम्यक्त्वा सत्त्व है उसके सम्यग्मिथ्यात्वका सत्त्व नियमसे है । किन्तु जिसके सम्यग्मिध्यात्वका सत्त्व है उसके सम्यक्त्वका सत्त्व है भी और नहीं भी है। इसी अपेक्षासे उक्त सन्निकर्ष कहा I
* अब अल्पबहुत्वका अधिकार है ।
६ १७१. अधिकारका निर्देश करनेवाला यह सूत्र सुगम है । * सम्यक्त्वके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं ।
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$ १६६. मनुष्यत्रिक में सन्निकर्ष के समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यनियोंमें जो पुरुषवेदका संक्रामक है वह छह नोकपायोंका नियमसे संक्रामक है । आशय यह है कि इनके दोनोंका संक्रम एक साथ होता है अतः उक्त व्यवस्था बन जाती है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें जो मिध्यात्वका संक्रामक है वह सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकपायों का नियमसे संक्रामक है । अनन्तानुबन्धीचतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो उनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् संक्रामक है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व के संक्रामकका आश्रय लेकर सन्निकर्ष कहना चाहिये । जो अनन्तानुबन्धी क्रोधका कामक है वह मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, पन्द्रह कषाय और नौ नोकषायों का नियमसे संक्रामक है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीमान आदि तीन कषायों के संक्रामकका आश्रय लेकर सन्निकर्ष कहना चाहिये । जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका संक्रामक है उसके मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो उनका नियमसे संक्रामक है । अनन्तानुबन्धीचतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं है । यदि हैं तो उनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् संक्रामक है । ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंका नियमसे संक्रामक है । इसी प्रकार ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामकका आश्रय लेकर सन्निकर्ष कहना चाहिये । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये ।
$ १७०. भावका प्रकरण है । सर्वत्र श्रदयिक भाव है ।
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