Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २६ ]
सणियासो
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$ १६५ पुरिसवेद संकार्मेतो तिरहं संजलणाणं णियमा संकामओ । लोभसंजणस्स सिया संका० सिया असंका० । सेसं सिया अत्थि सिया णत्थि । जइ अस्थि, सिया संका० सिया असंका० ।
$ १६६. हस्सं संकामें तो
संजलणतियपुरिस वेद- पंचणोकसायाणं णियमा काम | लोभसंजणस्स सिया संकामओ ० | सेसं सिया अस्थि० । जदि अस्थि सिया काम सिया असंका० । एवं पंचणोकसायाणं पिं ।
$ १६७. आदेसेण णेरइएसु मिच्छत्तं संकायेंतो सम्मत्तस्स असंकामओ । सम्मामि० सिया संका ० सिया असंका० । अणंताणु० चउकं सिया अस्थि० । जइ अस्थि सिया संकामओ० । बारसक०-णवणोक० णियमा संकामओ । सम्मत्ताणताणु०चक्क० ओघं । सम्मामिच्छतं संकामेंतो मिच्छ० सिया संकामओ० । सम्मा०उसके साथ होती है अतः नपुंसकवेदका संक्रामक स्त्रीवेदका भी नियमसे संक्रामक ठहरता है । शेष कथन पूर्ववत् है ।
$ १६५. जो पुरुषवेदका संक्रामक है वह तीन संज्वलनोंका नियमसे संक्रामक है। लोभसंज्वलनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । शेष प्रकृतियां कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं । यदि हैं तो उनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है ।
विशेषार्थ — क्रोध आदि तीन संज्वलनोंका संक्रम पीछे तक होता रहता है इसलिये पुरुषवेदके संक्रामकको इनका संक्रामक नियमसे बतलाया है। आनुपूर्वी संक्रमके चालू हो जाने के समय से लोभसंज्वलनका संक्रम नहीं होता किन्तु तब भी पुरुषवेदका संक्रम होता रहता है, इसलिये पुरुषवेदके संक्रामक्के लोभसंज्वलनके संक्रमके विषय में नियम बतलाया है। शेष कथन सुगम है।
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$ १६६. जो हास्यका संक्रामक है वह तीन संचलन, पुरुषवेद और पाँच नोकषायोंका नियमसे संक्रामक है । लोभसंज्वलनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । शेष प्रकृतियां कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो उनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् संक्रामक है । इसीप्रकार पाँच नोकषायोंके संक्रामकका आश्रय लेकर कथन करना चाहिये ।
विशेषार्थ — क्रोध आदि तीन संज्जलन और पुरुषवेदका संक्रम पीछे तक होता रहता है। तथा पाँच नोकषायों का संक्रम हास्य के संक्रमका सहचारी है । इसीसे हास्यके संक्रामकको उक्त प्रकृतियोंका संक्रामक नियमसे बतलाया है । लोभसंज्वलनका संक्रम पूर्व में ही रुक जाता है तब भी हास्यका संक्रम होता रहता है । इसीसे हास्यके संक्रामकके लोभसंज्वलन के संक्रमके विषय में नियम बतलाया है । शेष कथन सुगम है ।
$ १६७. आदेश से नारकियोंमें जो मिध्यात्वका संक्रामक है । वह सम्यक्त्वका असंक्रामक है । सम्यग्मिथ्यात्वा कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । अनन्तानुबन्धीचतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो उनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् संक्रामक है। बारह कषाय और नौ नोकषायों का नियमसे संक्रामक है । सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके श्राश्रयसे सन्निकर्षका कथन ओघके समान है । जो सम्यग्मिध्यात्वका संक्रामक है वह मिथ्यात्वका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । सम्यक्त्व और
१. ता० प्रती 'पि' इति पाठो नास्ति ।
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