Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २६ ]
सणियासो
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क्खाणको भंगो | पच्चक्खाणलोभं णियमा संकामे । दसकसाय - णवणोकसायाणं सिया काम सिया अकाम० । एवं पच्चक्खाणलोभं ।
$ १६०. कोधसंजलणं संकामेंतो मिच्छ० सम्म ०- सम्मामि० - बारसक० - णवणोक० सिया अस्थि सिया णत्थि । जइ अत्थि, सिया संका ० सिया असंका ० | दोन्ह संजणाणं णियमा संकामओ । लोभसंजलणस्स सिया संकाम० सिया असंका० ।
$ १६१. माणसंजलणं संकामेंतो मायासंजलणस्स णियमा संकामओ । लोभसंजल० सिया संका० सिया असंका hi सिया अस्थि सिया णत्थि । जइ अस्थि, सिया संकाम० सिया असंका० ।
$ १६२. मायासंजलणं संकार्मेतो लोभसंजल० सिया संका ० सिया असंका० ।
और चार अनन्तानुबन्धियोंका भंग प्रत्याख्यानावरण क्रोध के समान है । यह प्रत्याख्यानावरण लोभका नियमसे संक्रामक है । तथा दस कपाय और नौ नोकपायोंका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् संक्रामक है । इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण लोभका संक्रम करनेवाले जीवके विषय में भी जानना चाहिये ।
विशेषार्थ – अप्रत्याख्यानावरण लोभ और प्रत्याख्यानावरण लोभ इनका उपशम एक साथ होता है | अतः एकका संक्रामक दूसरेका संक्रामक नियमसे है यह कहा है । शेष कथन सुगम है
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$ १६०. जो क्रोधसंज्यलनका संक्रम करता है उसके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कपाय और नौ नोकपाय इनका सत्त्व कदाचित् है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो इनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । किन्तु यह दो संज्वलनोंका नियमसे संक्रामक है । लोभसंज्वलनका कदाचित संक्रामक है कदाचित् असंक्रामक है ।
विशेषार्थ — क्षपकश्रेणिकी अपेक्षा क्रोधसंज्वलनवालेके मिध्यात्व आदि २४ प्रकृतियोंका सत्वनाश हो जाता है यह स्पष्ट ही है । अतः क्रोधसंज्वलन के संक्रामकके उक्त चौबीस प्रकृतियाँ कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं यह बात बन जाती है । इन प्रकृतियोंका सत्त्व रहने पर भी यथायोग्य स्थानमें इनका संक्रम नहीं होता, अन्यत्र होता है, अतः जो संज्वलन क्रोधका संक्रामक है वह उक्त चौबीस प्रकृतियोंका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है, यह कहा है । किन्तु इस जीवके संज्ञलन मान और मायाका सवनाश या उपशम पीछेसे होता है, अतः यह इन दोनों प्रकृतियों का नियमसे संक्रामक है। तथा लोभसंज्वलनका आनुपूर्वी संक्रमका प्रारम्भ होने के पूर्वतक संक्रामक है और उसके बाद असंक्रामक है ।
१६१. जो मान संज्वलनका संक्रामक है वह माया संज्वलनका नियमसे संक्रामक है । वह लोभसंज्वलनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है । इसके शेष प्रकृतियाँ कदाचित् और कदाचित नहीं हैं । यदि हैं तो उनका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् संक्रामक है |
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विशेषार्थ — मानसंज्वलनके संक्रामकके एक माया संज्वलन ही ऐसी प्रकृति बचती है जिसका वह नियमसे मंक्रम करता है। शेष कथनका खुलासा पूर्ववत् जानना चाहिये ।
$ १६२. जो माया संचलनका संक्रामक है वह लोभ संज्वलनका कदाचित संक्रामक है।
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