Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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[ बंधगो ६
जाव उवरिमगेवज्जा त्ति ।
$ १२३. पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज० सम्म० - सम्मामि० सिया सव्वे संकामया । सिया संकामया च असंकामओ च । सिया संकामया च असंकामया च । सोलसक० raणोकसायाणं णियमा संकामया ।
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
$ १२४. मणुस अपज्जत० सम्म० - सम्मामि० संकामयासंकामयाणमट्ठ भंगा कायव्वा । सोलसक० - णवणोक० सिया संकामओ । सिया संकामया । अणुद्दिसादि जाव सव्वट्टा त्तिमिच्छ० - सम्मामि ० - बारसक० - णवणोक० णियमा संकामया । अताणु ० चउक्कस्स ओघो । एवं जाव० ।
$ १२५. संपहि भागाभाग - परिमाण खेत्त-पोसणाणं परूवणडुमुच्चारणमवलंबेमो । तं जहा - भागाभागाणु ० दुविहो णि० - ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०संकामया सव्वजीवाणं केव० ? अनंतभागो । असंकाम० अनंतभागा । सम्म० संकाम० सव्वजीवाणं केव० ? असंखे० भागो । असंकामया असंखेज्जा' भागा। सम्मामि
प्राप्त होता है । पर नरक में उपशमश्रेणि सम्भव नहीं, इसलिये इनकी अपेक्षा यहाँ एक ही भंग बतलाया है । इसी प्रकार सब नारकी, तिर्यञ्चत्रिक, देव और उपरिम मैवेयक तक के देवों के जानना चाहिये ।
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$ १२३. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चलव्ध्यपर्याप्तकों में सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के कदाचित् सब जी संक्रामक हैं । कदाचित् बहुत जीव संक्रामक हैं और एक जीव असंक्रामक है । कदाचित् बहुत जी संक्रामक हैं और बहुत जीव असंक्रामक हैं । तथा सोलह कषाय और नौ नोकषायों के नियम से सब जीव संक्रामक हैं ।
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विशेषार्थ — आशय यह है कि इन जीवोंके मिध्यात्वका संक्रम और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका असंक्रम तो सम्भव ही नहीं, क्योंकि यहाँ अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान नहीं होता । अतः मिथ्यात्व के सिवा शेष प्रकृतियों की अपेक्षा से उक्त प्रकारसे भंग बतलाये हैं ।
$ १२४. मनुष्य अपर्याप्तकों में सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक और संक्रामकों के आठ भंग कहने चाहिये । तथा सोलह कषाय और नौ नोकषायों की अपेक्षा कदाचित् एक जीव संक्रामक होता है और कदाचित् अनेक जीव संक्रामक होते हैं ये दो भंग होते हैं । तथा अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देव मिध्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकपायों के नियमसे संक्रामक होते हैं । तथा यहाँ अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग श्रोघके समान है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये ।
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$ १२५. अब भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र और स्पर्शनका कथन करनेके लिये उच्चारणाका अवलम्बन लेते हैं । यथा-भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ निर्देश और देशनिर्देश । उनमें से ओघकी अपेक्षा मिथ्यात्व के संक्रामक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं । श्रसंक्रामक जीव कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्त बहुभागप्रमाण हैं I सम्यक्त्वके संक्रामक जीव सव जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ।
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१. श्र०प्रतौ संखेजा इति पाठः ।
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