Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २६ ]
भागाभागो संकामया असंखेज्जा भागा। असंकामया असंखेज्जदिभागो। सोलसक०-णवणोक०संकामया' अणंता भागा । असंकामया अणंतभागो ।
१२६. आदेसेण णेरइय० मिच्छ०-सम्म०संकाम० असंखे०भागो । असंकामया असंखेज्जा भागा। सम्मामि०-अणंताणु०४संकाम० असंखेज्जा भागा। असंकाम० असंखे०भागो। बारसक०-णवणोक० णत्थि भागाभागो, संकामयाणमेव णिप्पडिवक्खाणमेत्थ दंसणादो। एवं सव्वणेरइय-पंचिंदियतिरिक्खतिय-देवा जाव सहस्सारे त्ति ।
___१२७. तिरिक्खेसु मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-अणंताणु०४ ओघं । बारसक०णवणोक० णत्थि भागाभागो। पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुसअपज० सम्म०-सम्मामि०संकाम० असंखेजा भागा । असंकाम० असंखे०भागो । सेसपयडीणं गत्थि भागाभागो।
१२८. मणुस्सेसु मिच्छत्त० णारयभंगो। सम्म०-सम्मामि०-सोलसक०णवणोक० संकामया असंखेजा भागा। असंकाम० असंखे०भागो। एवं मणुसपज०मणुसिणीसु । णवरि संखेचं कायव्यं ।
$ १२९. आणदादि जाव णवगेवजा ति णारयभंगो। णवरि मिच्छ० संकामया असंक्रामक जीव कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण है। असंक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। सोलह कपाय और नो नोकपायोंके संक्रामक जीव अनन्त बहुभागप्रमाण हैं। असंक्रामक जीव अनन्तवें भागप्रमाण हैं।
६१२६. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें मिथ्यात्व और सम्यक्त्वके संक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंक्रामक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके संक्रामक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। असंक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। यहाँ बारह कषाय और नौ नोकषायोंका भागाभाग नहीं है, क्योंकि नरकमें इनके केवल संक्रामक जीव ही देखे जाते हैं । इसी प्रकार सब नारकी, पंचेन्द्रियतिर्यचत्रिक, सामान्य देव और सहस्रार कल्प तकके देवोंमें जानना चाहिये।
१२७. तिर्य चोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्क्रकी अपेक्षा भागाभाग अोधके समान है । तथा यहाँ बारह कषाय और नौ नोकषायोंका भागाभाग नहीं हैं । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चअपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । असंक्रामक असंख्यातवें भागप्रमाण हैं यहाँ शेष प्रकृतियोंका भागाभाग नहीं है।
१२८. मनुष्योंमें मिथ्यात्वका भंग नारकियोंके समान है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामक असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। असंक्रामक असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंके जानना चाहिये। किन्तु इनमें असंख्यातके स्थान में संख्यातका कथन करना चाहिये ।
$ १२६. आनत कल्पके लेकर नौ ग्रैवेयक तकका कथन नारकियोंके समान है। किन्तु १. श्रा०प्रतौ सोलसक० संकामया इति पाठः ।
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