Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ 8 सव्वद्धा।
१४२. णाणाजीवे पडुच्च सव्वकम्माणं संकामयपवाहस्स सव्वकालं वोच्छेदादसणादो।
६ १४३. संपहि देसामासियसुत्तेणेदेण सूचिदासेसपरूवणट्टमुच्चारणं वत्तइस्सामो । तं जहा-कालाणुगमेण दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण अट्ठावीसंपयडीणं संकामया केवचिरं० ? सव्वद्धा । मिच्छ०-सम्म०असंकामया सव्वद्धा । सम्मामि०अणंताणु०चउक्कअसंका० जह० एगसमओ समगृणावलिया, उक० पलिदो० असंखे०भागो । बारसक०-णवणोक० असंका० जह एगस०, उक० अंतोमु० । एवं चदुसु गदीसु । णवरि मणुसगदिवदिरित्तसेसगदीसु बारसक०-णवणोक० असंकामया णत्थि । अणंताणु०असंका० जह० एगसमओ। मणुसतिए अणंताणु०४असंका० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । मणुसपज०-मणुसिणीसु सम्मामि० असंका० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्त । पंचिंदियतिरिक्खअपज०-अणुदिसादि जाव सव्वट्ठा त्ति सत्तावीसं पयडीणं संका० केव० ? सव्वद्धा । सव्वद्वे० अणंताणु०चउक्क० असंकामया जह० समयूणावलिया, उक० अंतोमु० । मणुसअपज्ज० सम्म०-समामि०संका०-असंका० जह० एगस०, उक०
* सर्वदा काल है
१४२. क्योंकि नाना जीवोंकी अपेक्षा सब कर्मों के संक्रम करनेवाले जीवोंके प्रवाहका कभी भी विच्छेद नहीं देखा जाता है।
$१४३. यतः यह सूत्र देशामर्षक है, अतः इससे सूचित होनेवाले अशेष अर्थका कथन करनेके लिये उच्चारणाको बतलाते हैं। यथा-कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । अंघसे अट्ठाईस प्रकृतियोंके संक्रामक जीवोंका कितना काल है ? सब काल है। मिथ्यात्व और सम्यक्त्वके असंक्रामक जीवोंका सब काल है। सम्यग्मिथ्यात्वके असंक्रामक जीवोंका जघन्य काल एक समय है। अनन्तानुबन्धी चतुष्कके असंक्रामक जीवोंका जघन्य काल एक समयकम एक आवलि है। तथा इन दोनोंके असंक्रामक जीवोंका उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। बारह कषाय और नौ नोकषायोंके असंक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यगतिके सिवा शेष गतियोंमें बारह कपाय और नौ नोकषायों के असंक्रामक जीव नहीं है। किन्तु इनमें अनन्तानुबन्धीचतुष्कके असंक्रामक जीवोंका जघन्य काल एक समय है। मनुष्यत्रिकमें अनन्तानुबन्धीचतुष्कके असंक्रामक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें सम्यग्मिथ्यात्वके असंक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है तथा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंके संक्रामकोंका कितना काल है ? सब काल है। सर्वार्थसिद्धिमें अनन्तानुबन्धीचतुष्कके असंक्रामकोंका जघन्य काल एक समय कम एक आबलि है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रोमकों और असंक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है तथा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org