Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
पढमसम्म तुप्पाइयपढमसमए तदभावादो । अण्णत्थ सव्वत्थ वि तदुवलंभादो ।
* सम्मत्तस्स असंकामत्र ।
$ १४८. कुदो ? दोहं परोप्परपरिहारेणावदित्तादो । एत्थ मिच्छत्तस्स संकामओ ति अहियारसंबंधो कायव्वो । सुगममण्णं ।
* तारबंधी सिया कम्मंसिश्रो सिया कम्मंसियो । जदि कम्मंसिो सिया संकामत्र सिया संकामत्र ।
$ १४९. एत्थ विपुव्वं व अहियारसंबंधो कायव्वो, तेण मिच्छत्तसंकामओ सम्माइट्ठी अनंतणुबंधिचउकस्स सिया कम्मंसिओ । तेसिमविसंजोयणाए सिया अकम्मंसिओ, बिसंजोयणाए णिस्संतीकरणस्स वि संभवादो । तत्थ जड़ कम्मंसिओ तो तेसिं संकमे भयणिज्जो, आवलियपविट्ठसंतकम्मियम्मि तदणुवलंभादो इयरत्थ वि तदुवलंभादो त सुत्तत्थो ।
* सेसाणमेक्कवीसाए कम्माणं सिया संकामत्रो सिया असंकामत्रो । $ १५०. एत्थ विपुव्वं व अहियारसंबंधो । कथमेदेसिमसंकामयत्त मेदस्स चे १ समयमें सम्यग्मिथ्यात्वका संक्रम न होकर वह अन्यत्र सर्वत्र पाया जाता है ।
* वह सम्यक्त्वका असंक्रामक है ।
$ १४८. क्योंकि ये दोनों संक्रम एक दूसरेके अभाव में पाये जाते हैं। आशय यह है कि मिथ्यात्वका संक्रम सम्यग्दृष्टि जीवके होता है और सम्यक्त्वका संक्रम मिध्यादृष्टि जीवके होता है, अतः इनका एक साथ पाया जाना सम्भव नहीं है । इस सूत्र में 'मिच्छत्तस्स संकामओ इस पदका अधिकारवश सम्बन्ध कर लेना चाहिये । शेष कथन सुगम है ।
* उसके अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी कदाचित् सत्ता है और कदाचित् सत्ता नहीं है । यदि सत्ता है तो वह अनन्तानुबन्धीचतुष्कका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है।
$ १४६. यहां भी पूर्ववत् अधिकारवश 'मिच्छत्तस्स संकामयो' पदका सम्बन्ध कर लेना चाहिये । इसलिये यह अर्थ हुआ कि मिध्यात्वका संक्रामक जो सम्यग्दृष्टि जीव है वह जब तक अनग्तानुबन्धियोंकी बिसंयोजना नहीं हुई है तब तक उनकी सत्तावाला है और अनन्तानुबन्धियों की विसंयोजना होकर अभाव हो जानेपर उनकी सत्ता से रहित है । अब यदि सत्तावाला हैं तो उसके इनका संक्रम भजनीय है, क्योंकि अनन्तानुबन्धियोंकी सत्ता आवलिके भीतर प्रविष्ट हो जानेपर उनका संक्रम नहीं पाया जाता । किन्तु अन्यत्र पाया जाता है यह इस सूत्र का अर्थ है । तात्पर्य यह है कि ऐसे जीवके विसंयोजनाकी अन्तिम फालिके पतन के समय एक समय कम एक आवलि काल तक अनन्तानुबन्धीका संक्रम नहीं होता ।
* वह शेष इक्कीस प्रकृतियोंका कदाचित् संक्रामक है और कदाचित् असंक्रामक है ।
१५०. यहां भी पूर्ववत् अधिकारवश 'मिच्छत्तस्स संकामओ' पदका सम्बन्ध कर लेना
चाहिये ।
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[ बंधगो ६
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