Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ खुद्दाभवग्गहणं, उक० अणंतकालमसंखेज्जा।
६ ९९. पंचिंदियतिरिक्खतियम्मि मिच्छ०-सम्म० तिरिक्खोघभंगो। सम्मामि०अणंताणु०चउक्कस्स जह० एगसमओ, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि पुव्वकोडिपुत्तेणब्भहियाणि । बारसक०-णवणोक० जह० खुद्दाभव० अंतोमुहुत्तं, उक्क० तिण्णि पलिदो० पुव्वकोडिपुध० । नोकषायोंके संक्रामकका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है।
विशेषार्थ-तिर्यञ्चोंमें वेदकसम्यक्त्वका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य है । इसीसे यहां मिथ्यात्वके संक्रामकका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य बतलाया है। सम्यक्त्वके संक्रामकका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धोके संक्रामकका जघन्य काल एक समय जिस प्रकार नरकमें घटित करके बतला आये हैं उसी प्रकार यहां भी घटित कर लेना चाहिये; क्योंकि उससे इसमें कोई अन्तर नहीं है। जब यह जीव तिर्यच पर्यायमें रह कर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वलना करता रहता है और उद्वलनाके समाप्त होनेके पूर्व ही मरकर तीन पल्यकी आयुवाले तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न हो जाता है । फिर वहाँ सम्यक्त्वके योग्य कालके प्राप्त होने पर सम्यक्त्वको प्राप्त करके सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्ताको फिरसे बढ़ा लेता है और वहाँ या तो सम्यग्दृष्टि बना रहता है या मिथ्यात्वमें जाकर उद्वेलना होनेके पूर्व ही पुनः सम्यग्दृष्टि हो जाता है उसके तिर्यश्च पर्यायके रहते हुए पल्यका असंख्यातवां भाग अधिक तीन पल्य काल तक सम्यग्मिथ्यात्वका संक्रम देखा जाता है। इसीसे यहाँ सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामकका उत्कृष्ट काल उक्तप्रमाण कहा है। तिर्यञ्चगतिमें सदा रहनेका उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। इसीसे यहां अनन्तानुबन्धीचतुष्क तथा शेष बारह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामकका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है। तथा तिर्यश्च पर्यायमें रहनेका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है। इसीसे यहां बारह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामकका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण कहा है ।
६६. पंचेन्द्रियतिर्यंचत्रिकमें मिथ्यात्व और सम्यक्त्वके संक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल सामान्य तिय चोंके समान है। सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके संक्रामकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्व कोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है । बारह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामकका जघन्य काल सामान्य पंचेन्द्रिय तिय चमें क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण और शेष दोमें अन्तमुहूर्तप्रमाण है और उत्कृष्ट काल तीनोंमें पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है।
विशेषार्थ-पंचेन्द्रियतिर्यंचन्त्रिकका उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है, इस लिये यहाँ सम्यग्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, बारह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामकका उत्कृष्ट काल उक्तप्रमाण बतलाया है । तथा सामान्य तिर्यचका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण और शेष दो प्रकारके तिर्य चोंका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है। इसीसे यहाँ बारह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामकका जघन्य काल उक्तनमाण बतलाया है। शेप कालोंके कारणोंका निर्देश पहले कर ही आये हैं इसलिये यहाँ नहीं किया है।
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