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दोनों ही बहुओं को बा के अच्छे संस्कार मिले थे, दिवाली बा को और हीरा बा को। [5.2] पूर्व जन्म के संस्कार हुए जाग्रत माता के माध्यम से
बचपन में अंबालाल जी ने एक बच्चे को पत्थर मारा था। उसे खून निकल गया था। झवेर बा को पता चला तो बा ने कहा, 'यह क्या किया तूने, उस बेचारे को तो खून निकल गया। उसकी तो माँ भी नहीं है, वह अपनी चाची के घर रहता है, उसकी मल्हम पट्टी कौन करेगा? वह बेचारा कितना रो रहा होगा? तुम मार खाकर आना किसी को मारकर मत आना। तू उससे पत्थर लगने देना, मैं तेरा इलाज कर दूंगी'। तब से उन्होंने ऐसी शरारत बंद कर दी। बचपन से ही मदर अच्छे संस्कार देती थीं, अच्छा सिखाती थीं। बोलो! तो वह माँ महावीर बनाएगी या नहीं?
मूल रूप से खुद संस्कार का बीज लेकर आए थे लेकिन ऐसी मदर, ऐसे संयोगों से वे संस्कार प्रकट हुए थे।
अहिंसा के ऐसे ही पाठ मदर ने सिखाए थे। अंबालाल जी ने मदर से पूछा कि खटमल काट रहे हैं? तो मदर ने कहा, 'काट तो रहे हैं लेकिन मुझे कोई परेशानी नहीं है क्योंकि वे खाना खाकर चले जाते हैं, कोई टिफिन भरकर नहीं ले जाते'। तो यह बात उन्हें अच्छी लगी। तभी से उनकी खटमल के प्रति चिढ़, खटमल रात को काटते थे तो बाहर रख आते थे वह सब छूट गया। उसके बाद से खटमल को काटने देते थे। गले में काटते तो सहन नहीं होता था तो वहाँ से उठाकर खुद के पैरों पर रख देते थे।
पच्चीस-छब्बीस साल की उम्र में एक ऐसी घटना हुई कि दोपहर को मदर और हीरा बा और वे खुद खाना खा रहे थे तभी घर पर मेहमान आ गए। तब माँ जी के मुँह से निकल गया कि 'ये अभी कहाँ से आए?' तब उन्हें ऐसा लगा कि माँ जी का मन बिगड़ रहा है।
उसके बाद तो मेहमानों को खाना खिलाया। उसके बाद मदर
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