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उपशाखा-शुभध्यान ७७
शमध्यानस्य “फलं.” इस विधीसें किया हुवा ध्यान इस जीवोंको मोक्ष पंथ लगाने वाला है, हृदयके ज्ञान दीपकंकों प्रदिप्त करने वाला हैं, अतिंद्रीय-मोक्षके सुखको प्राप्त करने वाला हैं.यों ध्यानमें प्रवेश करनेसे ही, अध्यात्म.
"अहिंसा सत्यास्तेय ब्रम्हचर्या परिग्रहा यमाः अर्य-यप के प्रकार किये हैं. १ अहंसा-सबै प्राणीयोंके साय वैर (शवता) और बध (घात) से निवृते चितसे सर्वकै साय मैत्रीता होवे. (२) 'सत्य' मन और इन्द्रियोंमे जैसा जानने में आवे वैसा वोळे. परंतु दुःखदाई न बोले. जिससे वचन सिद्ध होवें. (३) 'अस्तय'-दूसरेकी वस्तु गिन आज्ञा अनुचित रीतसे गुप्त ग्रहण न करे जिससे सर्व इच्छित मिले. (४) 'ब्रह्मचर्य'कामका उदय न होवें ऐसा आचरण रक्खे जिससे शरीरका और सुदीका बल बढे. (५) 'अपरिग्रह' किसीभी वस्तु राग (प्रेम) . द्वेष न कर, निससे जन्मात्रका जीकालका ज्ञान प्राप्त हो. २ “शौच संतोष तपस्स्वध्यायेश्वर प्रणि धनानि नियमाः" अर्थ-नियमकेभी ५ प्रकार हैं (१) शौच*=बाह्यमें तो सात * श्लोक-सत्य शौचं तप शौच शौचं मिद्री निग्रह,
सब प्राण भत दया शौचं जल, शौचंतु पंचमः॥ अर्थ-सत्य बोलनसें, तप करनेसे, इन्द्री निग्रहो, प्राणीयोंकी दय
से और नल (पाणी) से सुची होती है.