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ध्यामकल्पतरू. प्रथम प्रतिशाखा-"आत्मा"
सूत्र “जे एगं जाणइ से सव्वं जाणेइ; जे सव्वं Nameer जाणेइ, से एगं जाणइ. आचारांग अ ३ सूत्र २०९
अर्थ-जो एकको जाणेगा, वो सबको जाणेगा और जो सबको जाणेगा वोही एकको जाणेगा! ®
वो एक पदार्थ कौनसा है? और कैसा है ? की जिसको जाणने से सर्वज्ञता प्राप्त होवे! उसका स्वरूप मां दर्शाते है.
वो "आत्मा" है. आत्माके ३ भेद किये हैं. १ बाहिर आत्मा, २ अंतर आत्मा, और ३ परमात्मा.
प्रथम पत्र-“बाहिर आत्मा" . १ बाहिर आत्मा जो यह प्रतक्ष हाडका पिं. जर रक्त मांसादी धातुओंसे भरा हुवा, और रंगीबेरंगी चमडी करके ढका हुवा. ममुष्य या तिथंच (पशुवों) ___ *श्लोक-एको भावः सर्वथा येन द्रष्टाः, सर्वे भावाः सर्वथा तेन सष्ठः सर्व भावाः सर्वथा येन द्ष्ठा, एको भाव सर्वथा तेन द्वष्ठाः ___ अ-जिनने एक पदार्थ को प्रति पूर्ण रुपसे देखा, उनने सर्व पदार्थ प्रति पूर्ण रुपसे देखा और जिसने सर्व पदार्थ पूर्ण से देखा. ज़िनने एक पदार्थ पूर्णस देखा. हुहा-निज रूपे निज वस्तु है. पर हपे परवस्त.
जिसने जाणी पैंच यह डसने जाणा समस्त.