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ध्यानकल्पतरू,
दिकयोनी में अनेक प्रकार का रूप धारन करता हैं.
और जबकर्म रूप मैल दूर हुवा देहाध्यास छूटा की निजरूपको सिद्ध स्वरूप को प्राप्त होजाता हैं.
संसारी जीवों को अनादी कालसे, ज्ञानावरणि यादी कर्मों का सम्बन्ध होने से, आत्मा की अनंत ज्ञानमय चैतन्य शक्ती लुप्त हुइहैं. इस लिये विभाव रूप हो रहाहैं. जैसे कीचड के संयोगसे पाणी की स्व च्छता नष्ट होती हैं, तैसे ही कर्म संयोगसे चैतन्य विभाव रुप हुवाहैं. जब भवस्थिती परिपक्व होतीहैं त ब सम्यक्त्वादी सामग्री प्राप्त होतीहैं. तब कर्म सम्बन्ध नष्ट हो शुद्ध चैतन्यता प्रगट होतीहै, उसीहीवक्त जी व सर्वज्ञाताको प्राप्त हो एक समयमें त्रिकाल के सर्व पदार्थ जानने देखने लगता हैं
सिद्धा जैसा जीव हैं, जीव सोही सिद्ध होए. कर्म मैलका अता, बूजेविरला कोए कर्म पुद्गल रुप हैं. जीव रुप हैं ज्ञान.
दो मिलके बहुरुप हैं बिछडे पद निर्वान. ... इस लिये यह जीव सिद्ध स्वरुपी हीहैं, क्योंकि जीव ही सिध्द पदको प्राप्तकर शक्ता हैं. अन्य नहीं. दे रइत्नीही हैं की, कर्म और जीव का मूल स्वभाव पह चानना चाहीये; कर्महैं सोपुद्गल जणितहैं, पुद्गल मय