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चतुर्थशाखा-शुक्लध्यान. ३५७ में यो स्तोकका काल पूरा करे. ऐसे अनुक्रमे सब काल जन्म मरण कर स्पइयें. ७ भावसे बादर पुल प्रावर्तन सो ५ वर्ण, २ गंध, ५ रस, ८ स्पश्यं. इन २० ही बोलके सर्व पुगलोंको स्पश्यें, ८ भावसे सुक्ष्म पुगल प्रावृत सो पहले एक गुणे काल वर्णके जगत् में जि. ने पुनल हैं, उन सबको स्पश्यें, फिर दुगणे कालेकों यों त्री गुणों आवत असंख्यात गुणे काले वर्ण के पु. गल स्पश्य यो सर्व काले वर्णके पुद्गल स्पश्यें पीछे, हरे वर्णके पुल कालेकी तराह, अनुक्रमें स्पश्र्ये इसी तरह २० ही तरहके पुलको अनुक्रमें स्पश्ये. . __यह ८तरह पुद्गल प्रावर्तन करे उसे एक पुद्गल प्रावृतन कहना, ऐसे अनंत पुद्गल प्रावर्तन एकेक जीव संसार में करते हैं और अपने जीव ने भी कियेहैं. ऐ सी भव भ्रमणा में भ्रमण करते २अनंतानंत पुण्योदय होने से, मनुष्य जन्म से लगा शुक्लध्यानारूढ होने जित्ने अत्युत्तम समग्रीयों प्राप्ती हुइहै. यह उन्ह पुद्र लों के प्रावृतन सै निमुक्त कर, अखीडत, अचल, निरामय, मोक्षके सुख देने वाली है. ऐसा निश्चय शुक्ल ध्यानी को स्वभावसही होता हैं. और अनंत जीव अनंत पुनलो का प्रावृतन करते विभाव रूप विचित्रता को प्राप्त होते है वो प्रतिछाया उनकी शुद्ध आत्मामें