________________
३६० ध्यानकल्पतरू. मेंहीहै. परन्तु पर गुणों से ढके हुयेथे, जिस से इने दिन पैछान में नही आये अब उन्ह पुनलो से विप्रित शक्ति धारण करने वाले. गुणका संयोग होने सें, निजगु ण प्रगटे, जैसे वायु के जोग से बद्दल विखर तें है, और सूर्य का प्रकाश होताहै, तैसे पुल पर्याय रूप बद्दल वैराग्य वायू से दूर होने से अनंत ज्ञान जोती का अम णोदय हुवा जिस से पूर्ण प्रकाश होने का निश्चय हुवा तथा पूर्ण प्रकाश हवा जिस से कालांत्रमें सर्व पुदल परिचय से दुर होवूगा सत्य चित्य आनन्द रूप प्रगटे गा.तब निरामय नित्य अटल सुखका भुक्ता बनूंगा.
. पुष्प फल यह चार प्रकार का विचार शुक्ल ध्यानी के हृदय मै स्वभाव से ही सदा प्रणति में प्रणमता रहता हैं, जिस के प्रबल प्रभाव से उनकी आत्मा सर्व विभावों पुनल प्रणती के सम्बन्ध रूप से निवृत, सर्व कर्म में विमुक्त हो अत्यंत शुद्धता. परम पवित्र को प्राप्त होअनंत अक्षय अव्याबाध मोक्ष के सुख में तल्लीन रह
यह शुक्लध्यानीके ४ पाये, ४ लक्षण, ४ आलंबन, और ४ अनुप्रेक्षा, यो १६ भेदका वर्णव हुवा.